पत्थर जड़ है परन्तु, वह छोडता है तभी भगवान बनता है: आदित्य सागर महाराज

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से गुरुवार को जैन मंदिर रिद्धि- सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आयोजित चातुर्मास के अवसर पर आदित्य सागर मुनिराज ने अपने नीति प्रवचन में जीवन प्रबंधन पर बोलते हुए कहा कि जीवन में त्याग से नाता जोड़ें, संग्रह से नाता तोड़ें।

वर्तमान में मनुष्य मानव वृति को भूलकर दानव वृति से जुडता जा रहा है। धार्मिक क्रियाओं से दूर होकर अधार्मिकता को जोडता जा रहा है। इसका मानव को ज्ञान भी होता है। छोडना मानवीय और जोडना दानवीय वृति है।

उन्होंने कहा कि जो कमाया है और पुरखो से मिला है सब कुछ छूट जाना है। कुछ द्रव्यो, भावों और कर्मों को छोड़ना और कुछ से जोड़ कर मोक्ष मार्ग पर प्रस्थान करना है।
उन्होने उदाहरण स्वरूप कहा कि पत्थर का स्वभाव जड़ है। परन्तु जब मूर्तिकार उसमें से अनावश्यक पत्थर हटाता है, तो भगवान की मूर्ति में पत्थर ढलता है। ऐसे ही आप जीवन में अनावश्यक छोडते चले जाए आप मोक्ष पथ पर अग्रसर हो जाएंगे। अनावश्यक वस्तु का त्याग जरूरी है।

उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहा कि मैं ग्रंथ लिख रहा हूं, परन्तु एक भी ग्रंथ मेरे साथ नहीं जाएंगे। परन्तु ग्रंथ लेखन का पुण्य मेरे साथ जाएगा। यदि त्याग से नाता जोडोगे तो आप उपर उठते जावोगे। यदि आप धन काम रहे हो तो दान अवश्य करें।

इस अवसर पर चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, रिद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, पारस कासलीवाल, आरकेपुरम जैन मंदिर के अध्यक्ष अंकित जैन सहित कई शहरो के श्रावक उपस्थित रहे।