दूसरों में सुधार करने की बजाय, मानव अपना स्वभाव बदले: आदित्य सागर महाराज

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर रिद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में सोमवार को आयोजित चातुर्मास पर आदित्य सागर महाराज ने अपने नीति प्रवचन में कहा कि दूसरों में सुधार करने की बजाय मानव को अपने स्वभाव में परिवर्तन करना चाहिए। हम दूसरों को सुधारने में लगे हैं, यह सबसे बडी गलती है। हमें अपने उपर कार्य करना है और सकारात्मकता बनाई रखनी है।

दूसरा जो करता है वह उसका कर्म है, मैं जो करता हूं वह मेरा धर्म है। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति किसी भी पेशे में या स्थान पर वह शीर्ष पर रहना चाहता है। परन्तु होता केवल एक ही व्यक्ति है. जो स्वंय पर कार्य करता है। इसलिए शीर्ष पर रहने के लिए सकारात्मकता बनाए रखते हुए स्वंय पर कार्य करना जरूरी है।

शीर्ष व्यक्ति की सोच, दृष्टिकोण अन्य से भिन्न होता है। ठान ली तो जीत और मान ली तो हार। उन्होंने जमीन का उदाहरण देते हुए कहा कि जमीन अपने अंदर कार्य करती है। मृदा से पत्थर बनता है, कोई सेंड स्टोन, कोटा स्टोन और कोई हीरो की खान बन जाती है, जिसका स्वंय पर कार्य अधिक होता है, वही हीरा बन पाता है।

उन्होंने कहा कि जब आपके लक्ष्य बड़े होते हैं, आपको नकारात्मकता फैलाने वाले भी अधिक मिलते हैं। व्यक्ति अपने स्वभाव से प्रतिक्रिया देता है। इसलिए उतना सुनो, जितना आपको बूस्ट करे। उन्होंने कहा धर्म व अच्छे कार्य करें सकारात्मकता बढेगी। वितरित परिस्थितयों में अपना दिमाग जितना चलाओगे आगे उतना ही आगे बढ़ते जाओगे।

इस अवसर पर रिद्धि- सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, पारस कासलीवाल, दीपक नान्ता, पीयूष बज, दीपांशु जैन, राजकुमार बाकलीवाल, जम्बू बज, महेंद्र गोधा, पदम जी बाकलीवाल, अशोक पापड़ीवाल सहित कई शहरो के श्रावक उपस्थित रहे।