नई दिल्ली। शुद्ध ब्याज मार्जिन पर दबाव के कारण वाणिज्यिक बैंकों को ऋण और जमा वृद्धि को एकसमान बनाने पर मजबूर होना पड़ सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अर्थव्यवस्था की स्थिति पर एक रिपोर्ट में यह बात कही।
पिछले एक साल से अधिक समय से बैंकों की जमा, ऋण वृद्धि से आगे निकल गई है। इसे देखते हुए नियामक ने बैंकों को संसाधन जुटाने के लिए प्रेरित किया है। ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि 26 जुलाई तक बैंकों की ऋण वृद्धि पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 13.7 फीसदी रही है जबकि जमा वृद्धि 10.6 फीसदी रही।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अप्रैल-जून तिमाही में बैंकों को जमा प्रमाणपत्रों और उच्च मूल्य वाले बचत खातों और सावधि जमा के माध्यम से धन जुटाना पड़ा। कुल जमाओं में कम लागत वाले चालू और बचत खाता जमाओं की हिस्सेदारी कम होने से बैंकों के शुद्ध मार्जिन पर संभावित दबाव के कारण, उच्च लागत वाले विकल्पों के माध्यम से बैंकों के घरेलू धन जुटाने के प्रयासों पर अंकुश लग सकता है। आरबीआई ने स्पषष्ट किया है कि रिपोर्ट में दिए गए विचार लेखक के हैं न कि बैंकिंग नियामक के।
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि वित्त वर्ष 2025 (9 अगस्त तक) में बैंकों द्वारा 3.49 लाख करोड़ रुपये के जमा प्रमाणपत्र (सीडी) जारी किए गए, जो पिछले साल की समान अवधि के 1.89 लाख करोड़ रुपये से काफी ज्यादा है। रिपोर्ट के अनुसार इसके पीछे जमा वृद्धि का ऋण वृद्धि से पिछड़ना हो सकता है क्योंकि बैंकों को रकम जुटाने के लिए वैकल्पिक स्रोतों का सहारा लेना पड़ा।
खुदरा मुद्रास्फीति के 4 फीसदी से नीचे आने के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि यह गिरावट सांख्यिकी आधार के कारण आई है। रिपोर्ट के अनुसार जुलाई में खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी लंबी अवधि के औसत से ज्यादा रही थी। इससे खुदरा मुद्रास्फीति के बढ़ने का जोखिम बना हुआ है। मांग की स्थिति में सुधार हो रहा है और इसका असर एफएमसीजी कंपनियों में भी दिख रहा है।