नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट अब रद्द की जा चुकी 2018 की चुनावी बॉन्ड योजना (इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम) के तहत विभिन्न राजनीतिक दलों को प्राप्त राशि जब्त करने का केंद्र एवं अन्य को निर्देश देने का अनुरोध करने वाली याचिका पर 22 जुलाई को सुनवाई करने वाला है।
शीर्ष अदालत ने 15 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसले में अनाम राजनीतिक वित्तपोषण संबंधी केंद्र की चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया था। शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर 22 जुलाई को अपलोड की गई वाद सूची के अनुसार, प्रधान न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ खेम सिंह भाटी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करने वाली है।
याचिका में कहा गया है कि 15 फरवरी को शीर्ष अदालत ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था और अदालत के निर्देश के अनुसार, विभिन्न कॉरपोरेट घरानों द्वारा खरीदे गए और राजनीतिक दलों द्वारा भुनाये गए चुनावी बॉन्ड का विवरण निर्वाचन आयोग द्वारा सार्वजनिक किया गया था।
याचिका में कहा गया है, ”यह दलील दी गई है कि राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी बॉन्ड के माध्यम से प्राप्त राशि न तो ‘चंदा’ और न ही ‘स्वैच्छिक योगदान’ था। यह याचिका वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया द्वारा तैयार की गई है और इसे अधिवक्ता जयेश के. उन्नीकृष्णन के मार्फत शीर्ष अदालत में दायर किया गया है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि चुनावी बॉन्ड की खरीद और इन्हें भुनाने के विवरण से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि कंपनियों द्वारा राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के माध्यम से धन का भुगतान किया गया, ”जो या तो आपराधिक मुकदमे से बचने के लिए या अनुबंध या अन्य नीतिगत मामलों के माध्यम से मौद्रिक लाभ प्राप्त करने के लिए था।”
इसमें दावा किया गया है कि राजनीतिक दलों ने सरकार में सत्तारूढ़ पार्टी होने के नाते अपनी स्थिति का दुरुपयोग किया है और पर्दे के पीछे रहकर चुनावी बॉन्ड हासिल किए हैं। राजनीतिक दलों ने चुनावी बॉन्ड का उपयोग धन उगाही करने के लिए एक औजार और तरीके के रूप में किया। पार्टियों ने उनके आपराधिक मुकदमे से समझौता कर कॉरपोरेट घरानों को अनुचित लाभ पहुंचाया।