जयपुर। कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) ने सोमवार को मध्य प्रदेश, राजस्थान, असम और उत्तराखंड के लिए लोकसभा उम्मीदवारों का चयन करने के लिए दूसरी बैठक की। इसमें विचार-विमर्श के आधार पर माना जा रहा है कि राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे।
पार्टी नेताओं ने कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं की बड़ी मांग थी कि गहलोत और पायलट चुनाव लड़ें, लेकिन कांग्रेस नहीं चाहती की वे लड़ें क्योंकि दोनों को चुनावी समर में सिर्फ एक सीट पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय बड़ी भूमिका निभानी है।
सीईसी की बैठक में गहलोत और पायलट दोनों को विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर आने के लिए कहा गया था, लेकिन गहलोत नहीं आए। हालांकि उनकी गैरमौजूदगी में भी इस बात पर बहस चल रही थी कि छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल की तरह उन्हें भी चुनाव लड़ना चाहिए। उनकी अनुपस्थिति में आखिरकार फैसला लिया गया कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे। बैठक में कुल 63 सीटों पर चर्चा हुई जिसमें से लगभग 40 सीटों पर फैसला आया है। सीईसी मध्य प्रदेश की केवल 6-7 सीटों पर ही किसी फैसले पर पहुंच पाई है।
गहलोत कांग्रेस के शीर्ष ओबीसी नेताओं में से एक हैं और पार्टी को राज्यों, खासकर उत्तर भारत में प्रचार के लिए उनकी जरूरत है। पायलट, जो छत्तीसगढ़ के प्रभारी और सीडब्ल्यूसी (कांग्रेस कार्य समिति) के सदस्य हैं, पार्टी का एक प्रमुख युवा चेहरा हैं।
उन्हें पहले ही प्रचार के लिए विभिन्न राज्यों में भेजा जा चुका है। वहीं कांग्रेस के दो नेताओं का कहना है कि गहलोत के बेटे वैभव जालोर से चुनाव लड़ सकते हैं, जिसे पूर्व सीएम का गढ़ माना जाता है। उन्होंने 2019 में जोधपुर से, चुनाव लड़ा था लेकिन बीजेपी के गजेंद्र सिंह शेखावत से हार गए थे।
पार्टी की चुनावी रणनीति के तहत, गहलोत जोधपुर, नागौर, बीकानेर और पाली जिलों में चुनाव प्रबंधन के प्रभारी होंगे। जबकि पायलट दौसा, टोंक और धौलपुर को संभालेंगे। राजस्थान कांग्रेस प्रमुख गोविंद सिंह डोटासरा को सीकर और जयपुर जिलों की जिम्मेदारी दी जानी लगभग तय है। वहीं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को उदयपुर, राजसमंद और भीलवाड़ा जिले सौंपे गए हैं। एक नेता ने कहा, ‘हमारी जिम्मेदारियों में पार्टी उम्मीदवारों के लिए प्रचार, हर क्षेत्र के लिए रणनीति तैयार करना और समर्थकों और मतदाताओं को एकजुट करना शामिल होगा।’