मुम्बई। Red Sea Crisis: लाल सागर (रेड सी) के जलमार्ग पर यमन के हूती लुटेरों का आतंक बढ़ने से भारतीय चावल निर्यात पर संकट मंडरा रहा है। भारत से बासमती चावल का निर्यात इजरायल, मिस्र, जॉर्डन एवं यूरोपीय देशों में बड़े पैमाने पर होता रहा है। यह निर्यात दिसम्बर में घट गया।
उधर, निर्यातकों की कठिनाई लगातार बढ़ती जा रही है। क्योंकि प्रमुख शिपिंग कंपनियों ने इस प्रचलित एवं सस्ते जल मार्ग से अपना व्यावसायिक जहाज भेजना लगभग बंद कर दिया है जबकि दूसरा मार्ग काफी लम्बा एवं लचीला है।
नवम्बर 2023 से ही इस जलमार्ग पर संकट बरकरार है। 19 नवम्बर 2023 से वहां संकट घहराने लगा था जब ईरान समर्थित यमन के हूती विद्रोहियों में वहां व्यावसायिक (माल वाहक) जहाजों पर आक्रमण करना शुरू किया था।
इसके फलस्वरूप सामुद्रिक परिवहन का किराया ढाई-तीन गुना या उससे भी ज्यादा बढ़ गया और इंश्योरेंस खर्च में भी वृद्धि हुई। हकीकत यह है कि एशिया से यूरोप तथा अमरीका को होने वाले निर्यात के लिए शिपमेंट खर्च में लगभग पांच गुणा का इजाफा हो गया जिससे भारतीय निर्यातक बेहद परेशान हैं।
निर्यातकों के अनुसार कई मामलों में तो 20 फीट वाले कंटेनर का किराया भाड़ा बढ़कर 2500 से 5000 डॉलर तक पहुंच गया है जो पहले 600-700 से 1000-1200 डॉलर चल रहा था।
भारत के साथ-साथ दक्षिण एशिया के अन्य देशों के निर्यातकों को भी इस गंभीर संकट से भारी परेशानी हो रही है जिसमें पाकिस्तान, श्रीलंका एवं बांग्ला देश आदि शामिल है।दरअसल इन देशों का निर्यात अमरिका और यूरोप पर काफी हद तक निर्भर है।
लाल सगर के बजाए अब शिपिंग कंपनियां अफ्रीका महाद्वीप के दक्षिणी छोर से ‘कैप ऑफ गुड होप’ के रास्ते अपना जहाज यूरोप भेजने पर जोर दे रही है जो सुरक्षित तो है मगर इसमें समय अपेक्षाकृत ज्यादा लगता है और खर्च भी अधिक बैठता है। इससे भारतीय निर्यातकों के मार्जिन (लाभांश) में स्वाभाविक रूप से भारी गिरावट आ गई है।
हालांकि भारत से बासमती चावल का निर्यात इस संकट के कारण ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ है। क्योंकि इसका 80 प्रतिशत निर्यात पश्चिम एशिया के देशों में होता है जहां इसकी मांग मजबूत बनी हुई है लेकिन अन्य शासनों के शिपमेंट पर असर पड़ रहा है।