राजस्थान में 508 पूर्व विधायकों को 26 करोड़ रुपए पेंशन, संविधान का उल्लंघन

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जयपुर। Former MLAs Pension Case: संविधान के अनुच्छेद 195 और राज्य सूची की 38वीं एन्ट्री में पूर्व विधायकों को पेंशन देने का प्रावधान नहीं है। पेंशन उस व्यक्ति को दी जाती है, जो एक तय आयु के बाद सेवानिवृत्त होता है। जबकि विधायक सेवानिवृत्त नहीं होते हैं, बल्कि ये जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत चुने जाते हैं।

राजस्थान में हर माह 508 पूर्व विधायकों को करीब 26 करोड़ रुपए सालाना पेंशन के तौर पर दिए जा रहे हैं। वह भी जनता की कमाई से। इस मामले में महाधिवक्ता को याचिका की कॉपी देने के आदेश देते हुए मामले की सुनवाई तीस जनवरी को तय की है।

सीजे पंकज मित्तल और जस्टिस शुभा मेहता की खंडपीठ ने यह आदेश मिलाप चंद डांडिया की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। सुनवाई के दौरान अदालत ने याचिकाकर्ता से यह बताने को कहा है कि विधायक के तौर पर शपथ लेने से पूर्व उसकी मौत होने पर भी क्या पेंशन देने का प्रावधान है?।

इसके अलावा यदि कोई विधायक अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले किसी कारण से पद छोड़ता है तो क्या उसे भी पेंशन दी जा रही है?। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता विमल चौधरी और अधिवक्ता योगेश टेलर ने अदालत को बताया कि आरटीआई में मिली सूचना के तहत प्रदेश में 508 पूर्व विधायकों को करीब 26 करोड़ रुपए सालाना पेंशन के तौर पर दिए जा रहे है।

एक लाख रुपए मासिक से ज्यादा पेंशन
इनमें से कई विधायक वर्तमान में भी एमएलए हैं। वहीं करीब आधा दर्जन से अधिक पूर्व विधायकों को एक लाख रुपए मासिक से ज्यादा पेंशन राशि दी जा रही है। इसमें करीब 100 से अधिक पूर्व विधायक ऐसे हैं, जिन्हें मासिक पचास हजार रुपए से अधिक की पेंशन दी जाती है। याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार राजस्थान विधानसभा अधिकारियों और सदस्यों की परिलब्धियां एवं पेंशन अधिनियम 1956 व राजस्थान विधानसभा सदस्य पेंशन नियम, 1977 बनाकर पूर्व विधायकों को पेंशन का लाभ दे रही है।

पूर्व विधायकों को पेंशन देने का प्रावधान नहीं
जबकि संविधान के अनुच्छेद 195 और राज्य सूची की 38वीं एन्ट्री में पूर्व विधायकों को पेंशन देने का प्रावधान नहीं है। याचिका में कहा गया कि पेंशन उस व्यक्ति को दी जाती है, जो एक तय आयु के बाद सेवानिवृत्त होता है. जबकि विधायक सेवानिवृत्त नहीं होते हैं, बल्कि ये जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत चुने जाते हैं और उनका तय पांच साल का कार्यकाल होता है। इसके अलावा जनप्रतिनिधि को राज्य का सेवक भी नहीं माना जा सकता। और निगम के जनप्रतिनिधियों को इस श्रेणी में क्यों नहीं माना जाता? याचिका में यह भी कहा गया है कि पूर्व विधायकों की पेंशन आम जन पर भार है और ऐसे में इन पूर्व विधायकों पर पैसा नहीं लुटाया जा सकता. इसलिए वर्ष 1956 के अधिनियम और वर्ष 1977 के नियम को अवैध घोषित कर रद्द किया जाए तथा पूर्व विधायकों से दी गई राशि की रिकवरी की जाए।