–शोभा शुक्ला–
कोविड-19 महामारी के दौरान यह हम सबको स्पष्ट हो गया है कि ऐसा रोग, जिसका इलाज संभव न हो, उसका स्वास्थ्य, अर्थ-व्यवस्था और विकास पर कितना वीभत्स प्रभाव पड़ सकता है। दवाएं हमें रोग या पीड़ा से बचाती हैं और अक्सर जीवनरक्षक होती हैं।
परंतु उनके अनावश्यक और अनुचित दुरुपयोग से, रोग उत्पन्न करने वाला कीटाणु, प्रतिरोधकता विकसित कर लेता है और दवाओं को बेअसर कर देता है। दवा प्रतिरोधकता की स्थिति उत्पन्न होने पर रोग का इलाज अधिक जटिल या असंभव तक हो सकता है। साधारण से रोग जिनका पक्का इलाज मुमकिन है वह तक लाइलाज हो सकते हैं।
दवाओं का अनुचित और अनावश्यक दुरुपयोग सिर्फ़ मानव स्वास्थ्य में ही नहीं हो रहा है, बल्कि पशु स्वास्थ्य और पशु पालन, कृषि और खाद्य वर्ग, और पर्यावरण में भी ज़ोरों से हो रहा है। पशु और मानव के मध्य अनेक ऐसे रोग हैं, जो एक दूसरे से होते रहते हैं (जिन्हें ‘जूनोटिक’ रोग कहते हैं)।
यदि रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणु दवाओं के प्रति प्रतिरोधकता उत्पन्न कर लेते हैं तो यह पशु या मानव दोनों के लिए ख़तरे की घंटी है। क्योंकि जो भी ऐसे दवा-प्रतिरोधक कीटाणु से रोग ग्रस्त होगा उसका इलाज मुश्किल होगा या शायद इलाज हो ही न सके।
इसीलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि न सिर्फ़ मानव स्वास्थ्य में बल्कि सभी वर्गों में दवाओं के अनुचित, अनावश्यक या दुरुपयोग पर पूर्ण रोक लगे जिससे कि दवा प्रतिरोधकता पर अंकुश लग सके।
मुख्यत: मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ, पशु स्वास्थ्य और पशु पालन, कृषि, खाद्य और पर्यावरण से जुड़े वर्गों को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी स्तर पर और किसी भी रूप में, दवाओं का अनुचित, अनावश्यक या दुरुपयोग नहीं हो रहा है। इस व्यापक अन्तर-वर्गीय प्रयास को ‘वन हेल्थ’ भी कहते हैं।
दवा प्रतिरोधकता मृत्यु का बड़ा कारण
विश्व स्वास्थ्य संगठन के दवा-प्रतिरोधकता विभाग के निदेशक डॉ हेलिसस गेटाहुन ने कहा कि दवा प्रतिरोधकता के कारण दुनिया में सबसे अधिक मृत्यु हर साल हो रही हैं। 60 लाख से अधिक लोग एक साल में इससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मृत होते हैं।
विकास लक्ष्यों पर असर
असामयिक मृत्यु के साथ-साथ अर्थ-व्यवस्था और सभी 17 सतत विकास लक्ष्यों पर दवा प्रतिरोधकता का कुप्रभाव पड़ता है। विश्व बैंक की 2017 रिपोर्ट के अनुसार, यदि दवा प्रतिरोधकता पर अंकुश नहीं लगाया गया तो 2050 तक इससे हर साल रुपये 1200 खरब तक का आर्थिक नुक़सान होगा। विश्व बैंक का आँकलन है कि 2030 तक दवा प्रतिरोधकता के करण लगभग 3 करोड़ अधिक लोग ग़रीबी में धसेंगे।
दवा प्रतिरोधकता क्या है
बेक्टीरिया, वाइरस, फ़ंगस, या पैरासाइट – में जब आनुवंशिक परिवर्तन हो जाता है तब वह सामान्य दवाओं को बे-असर कर देता है। एंटीबाइओटिक हो या एंटी-फ़ंगल, एंटी-वायरल हो या एंटी-पैरासाइट, वे बे-असर हो जाती हैं और रोग के उपचार के लिए या तो नयी दवा चाहिए, और यदि नई दवा नहीं है तो रोग लाइलाज तक हो सकता है। इसीलिए दवा प्रतिरोधकता के कारणवश न केवल संक्रामक रोग का फैलाव ज़्यादा हो रहा है बल्कि रोगी अत्यंत तीव्र रोग झेलता है और मृत्यु का ख़तरा भी अत्याधिक बढ़ जाता है।
सबसे भीषण कुप्रभाव
विश्व स्वास्थ्य संगठन के थॉमस जोसेफ ने बताया कि कोविड-19 वैक्सीन की भांति दवा प्रतिरोधकता भी समान ढंग से सबको प्रभावित नहीं करती बल्कि इसका सबसे भीषण कुप्रभाव अफ़्रीका और दक्षिण एशिया के देशों को झेलना पड़ रहा है। थॉमस जोसेफ ने बहुत सटीक उदाहरण दिया यदि किसी समुदाय में बच्चों या लोगों को दस्त की समस्या जड़ पकड़ रही है तो स्वास्थ्य व्यवस्था के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि स्वच्छता, पीने और घरेलू उपयोग के लिए साफ़ पानी, और अन्य संक्रमण नियंत्रण व्यवस्था भी समुदाय और घरों में दुरुस्त रहे।