नई दिल्ली। सरकार और किसानों के बीच की वार्ता किसान नेताओं के अडि़यल रुख के चलते अंधे मोड़ पर पहुंच गई है। पांच दौर की वार्ता में चिह्नित मसलों पर सरकार के प्रस्ताव पर चर्चा के लिए होने वाली छठे दौर की वार्ता गर्त में चली गई। सरकार के प्रस्ताव पर जवाब देने की बजाय किसान यूनियनों ने आंदोलन और तेज करने और देशभर के रेलवे ट्रैक बाधित करने की चेतावनी दी है। किसान नेताओं के इस रुख को सरकार ने गैरवाजिब करार दिया है। अब वार्ता के लिए कोई तारीख तय नहीं की गई है। सरकार को अभी भी किसानों के औपचारिक जवाब का इंतजार है।
बुधवार को संशोधन प्रस्ताव भेजने के बाद किसानों की ओर से अगली बैठक की तारीख तय होनी थी, जिसमें एतराज वाले बिंदुओं पर चर्चा की जानी थी। किसान नेताओं ने वार्ता की जगह अचानक आंदोलन की घोषणा कर डाली। किसानों और खेती से जुड़े मसलों पर चिंता जताने आई यूनियनों ने अब अपने आंदोलन में टोल प्लाजा खोल देने, निजी कंपनियों के उत्पादों का बहिष्कार करने जैसे मुद्दे उठाने शुरू कर दिए हैं। उनके आंदोलन की दिशा भटकती दिखने लगी है।
किसान यूनियनों को भेजे प्रस्ताव और उनकी जिद के मद्देनजर अपनी स्थिति साफ करने की मंशा से आयोजित प्रेसवार्ता में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, ‘किसान नेताओं को वार्ता के रास्ते पर आना चाहिए। यहीं से कोई हल निकलेगा।’ किसान यूनियनों की ओर से संशोधन प्रस्ताव पर कोई जवाब न आने पर तोमर ने निराशा भी जताई। उन्होंने कहा कि कोरोना जैसी आपदा और बढ़ती ठंड में बाहर सड़कों पर आंदोलन करने की जगह वार्ता से हल निकालने की कोशिश होनी चाहिए।
किसानों की कानून वापसी की मांग के सवाल पर तोमर ने कहा, ‘कोई कानून पूरी तरह खराब नहीं हो सकता। कुछ प्रावधानों पर दिक्कत हो सकती है, लेकिन इस पर कोई कदम उठाना तब संभव है, जब उन बिंदुओं पर चर्चा हो। चर्चा का रास्ता खुला हुआ है।’ तोमर ने बताया कि कई दौर की लंबी चर्चा में ये सारे विषय आए थे, जिनके आधार पर प्रस्ताव बनाए गए हैं। अब उन्हें इन प्रस्तावों पर विस्तृत चर्चा के लिए आना चाहिए
एमएसपी का नए कानूनों से लेना-देना नहीं
न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के सवाल पर तोमर ने कहा, ‘इसका इन तीनों कानूनों से कोई संबंध नहीं है। इससे एमएसपी प्रभावित नहीं होता है। यह पहले की तरह जारी रहेगा।’ कृषि कानूनों को लेकर उठाई जा रही आशंकाओं के बारे में कृषि मंत्री ने स्पष्ट किया कि सरकार किसानों के हित संरक्षण के लिए कानून बना रही है। उन्हें उपज बेचने का अतिरिक्त विकल्प दिया जा रहा है। कृषि क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
सरकार की ओर से फिलहाल वार्ता के लिए कोई अगली तारीख तय नहीं की गई है। सरकार को अपने प्रस्तावों पर किसान यूनियनों के जवाब का इंतजार है। तोमर ने कहा कि सरकार ने किसानों के हित में ऐतिहासिक कार्य किए हैं, जिससे किसानों की आमदनी बढ़ाने में मदद मिलेगी। देश के 10.40 करोड़ किसानों को अब तक एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की नकद वित्तीय मदद सीधे उनके खाते में दी गई है। कृषि क्षेत्र के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए एक लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
कांट्रैक्ट फार्मिग में किसानों के हित सुरक्षित
रेल व वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, ‘कांट्रैक्ट फार्मिग कानून में किसानों के खेत को पूरी तरह सुरक्षित रखा गया है। किसानों के हित में हर संभव प्रावधान किए गए हैं। फिर भी कोई दिक्कत होगी, तो सुधार के लिए सरकार तैयार है। पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश समेत 10 राज्यों में यह कानून बहुत पहले से है। किसानों के खेत पर कांट्रैक्ट खेती वाला न लोन ले सकता है और न ही कब्जा कर सकता है।’