आधुनिक गणित को सरल और सटीक बना रही वैदिक गणित

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कोटा। एसोसिएशन ऑफ मैथेमेटिक्स टीचर्स ऑफ इंडिया (एएमटीआई) चैन्नई तथा दिशा डेल्फी पब्लिक स्कूल के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय 53वीं नेशनल मैथ्स कांफ्रेंस के दूसरे दिन गुरूवार को स्टूडेंट्स, टीचर्स और विशिष्ट गणितज्ञों ने शोध पत्र पढ़े। सत्र की शुरूआत स्टूडेंट्स के पेपर प्रजेन्टेशन के साथ हुई, इस सत्र में राजस्थान, महाराष्ट्र एवं मध्यप्रदेश के 13 स्टूडेंट्स ने पेपर प्रजेन्ट किए।

ये पेपर गणित की समस्या व समाधान पर आधारित थे। इसके बाद गणितज्ञों एवं गणित के शिक्षकों ने शोधपत्र प्रस्तुत किए। पैनल डिस्कशन में गणित की समस्या और समाधान पर चर्चा पैनल बनाकर चर्चा की गई। शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। डीडीपीएस स्कूल परिसर में राजस्थानी लोक नृत्य समेत कई आकर्षक सांस्कृतिक प्रस्तुतियां यहां दी गई।

नासिक कॉलेज ऑफ आर्किटैक्चर के व्याख्याता प्रो.दिलीप गोटखंडीकर ने गणित के इतिहास पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि भारत गणित का जनक है, क्योंकि यहां के वेदों में गणित के सूत्र हैं। अर्थव वेद व यजुर्वेद में इंजीनियरिंग मैथ्स बहुत काम में ली गई है। वैदिक मैथ्स आज भी बहुत सहायक सिद्ध हो रही है।

विद्यार्थियों के लिए आधुनिक मैथ्स को सरल व सटीक बनाने का काम वैदिक मैथ्स कर रही है। यही नहीं गणित हल निकालने में तेजी भी वैदिक मैथ्स में है। उन्होंने कहा कि आधुनिक मैथ्स और वैदिक मैथ्स में अंतर सिर्फ यही है कि आज गणित के उपयोग के लिए तकनीक आ चुकी है, तब बिना तकनीक के गणित के उच्चतम स्तर को छुआ गया।

इससे पूर्व डॉ.एस.आर.संथानम ने ज्यामितीय गणित की समस्याएं एवं समाधान विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने मैथेमेटिक्स ओलम्पियाड में शामिल होने वाले विद्यार्थियों के लिए ज्यामितीय गणित की चुनौतियों के बारे में बताते हुए कहा कि ओलम्पियाड की गणित को समझने के लिए पहले समस्याएं पहचाननी चाहिए, इसके बाद प्रेक्टिस के जरिए उनका समाधान खोजना चाहिए।

इससे पूर्व राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर के डॉ. अनिल शर्मा ने फ्लूड मैकेनिक्स के समसामयिक अध्ययन पर व्याख्यान दिया। उन्होंने फ्लूड मैकेनिक्स की शुरूआत से अभी तक की यात्रा के बारे में बताया। इससे पूर्व पहले सत्र में स्टूडेंट्स ने पेपर प्रजेन्ट किए, इस सत्र में 13 विद्यार्थियों ने भाग लिया, जिसमें राजस्थान, मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र के विद्यार्थी शामिल थे।

कक्षा 9 से 12 तक के इन विद्यार्थियों ने प्रॉब्लम सॉल्विंग टेक्नीक्स पर अपने विचार रखे। विद्यार्थियों ने ज्यामितीय गणित, एलजेब्रा एवं वैदिक गणित के बारे में बात की। इसके साथ ही टीचर्स प्रजेन्टेशन हुआ, जिसमें 10 शिक्षकों ने टीचिंग मैथ्ड्स के बारे में बताया। शिक्षण में किस तरह से गणित को सुगम बनाया जा सकता है। क्या तरीके हो सकते हैं, इस पर इन व्याख्यान में चर्चा हुई।

प्रॉब्लम ही लर्निंग है
कांफ्रेंस में बेंगलुरू से आई शिक्षिका वीना एम आर ने प्रॉब्लम पोजिंग एण्ड सॉल्विंग विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी समस्या को समझने के लिए इंटररिलेशनशिप, रूट कॉज एनालिसिस व फिश बोन डायग्राम का तरीका अपनाएं। इन तरीकों से हल तक पहुंचा जा सकता है। ये सभी तरीके जहां से समस्या शुरू हो रही है, वहां ले जाते हैं। गणित में प्रॉब्लम को पहचानने के साथ ही लर्निंग शुरू हो जाती है और इसी तरह स्टूडेंट स्वयं ही प्रेक्टिस के जरिए समाधान तक पहुंच जाता है।

मैथ्स में आर्ट्स
बेंगलुरू से ही आई शिक्षिका एस जयप्रिया ने मैथ्स व आर्ट्स को जोड़ा। उन्होंने बताया कि हर आर्ट में मैथ्स है। हम रंगोली बनाते हैं तो उसमें भी एंगल, कर्व और अंकों की गणित होती है। यदि गणित के चित्रों में आर्ट्स और आर्ट को गणित के रूप में देखा जाए तो समझना आसान होता है और गणित सुग्राही होती है। आर्ट और मैथ्स का इंटीग्रेशन स्टूडेंट को गणित के प्रति आकर्षित करता है और कलात्मक तरीके से गणित को समझा जा सकता है।

तरीका बदला और परिणाम बदला
जामनगर गुजरात से आई शिक्षिका वैशाली लखानी ने बताया कि यदि पढ़ाने का तरीका बदला जाए तो विद्यार्थी के लिए गणित ज्यादा आसान हो सकती है। उन्होंने कक्षा 10 के विद्यार्थियों को सर्किल समझाने के लिए एक विशेष मैथड तैयार किया। इसके बाद जब कुछ विद्यार्थियों पर उन्होंने इस तकनीक को अपनाया और अन्य विद्यार्थियों से तुलना की तो पता चला कि नए तरीके से विद्यार्थियों को गणित ज्यादा आसानी से समझ आ रही है।