कोटा। जैन धर्म के सबसे बड़े पर्व पर्यूषण पर्व के तहत चंद्र प्रभु दिगंबर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर ऋद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आध्यात्मिक श्रावक साधना संस्कार शिविर के प्रथम दिन आदित्य सागर मुनिराज ने अपने प्रवचन में तत्त्वार्थसूत्र रहस्य मोक्षमार्ग और सच्चाजान अध्याय पर विवेचना की।
इस अवसर पर जैन आगम व ग्रंथो की चर्चा भी गुरूदेव ने की। उन्होंने बताया कि प्राकत भाषा से संस्कृत भाषा में किस प्रकार जैन ग्रंथ लिखे गए। उन्होंने तीर्थंकरों द्वारा रचित ग्रंथो से भी श्रावकों को रूबरू करवाया और मोक्ष मार्ग का रास्ता बताया।
उन्होंने बताया कि तत्त्वार्थसूत्र को आचार्य उमास्वामी द्वारा लिखा गया माना जाता है। यह जैन दर्शन का सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें 10 अध्याय और 357 सूत्र हैं, जो जैन सिद्धांतों का सार प्रस्तुत करते हैं। जैन आम्नाय में यह सर्व प्रधान सिद्धांत ग्रंथ माना जाता है। उन्होने सात तत्त्व, मोक्षमार्ग के तीन रत्न, पंच महाव्रत,कर्म सिद्धांत, सामायिक संयम, गुणस्थान, द्रव्य, गुण और पर्याय तथा अनेकांतवाद पर विस्तार से श्रावकों को बताया। यह जैन समाज को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।
इस अवसर पर सकल जैन समाज के संरक्षक राजमल पाटौदी, मौसम त्रिपाल रिद्धि-सिद्धि जैन मंदिर के अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, पारस कासलीवाल सहित कई लोग उपस्थित रहे।