स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के निर्माण में कोटा के इंजीनियर का योगदान

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कोटा। गुजरात में सरदार सरोवर डैम पर बना सरदार वल्लभ भाई पटेल का 182 मीटर ऊंचा दुनिया का सबसे बड़ा स्टेच्यू 4 दिन बाद आमजन के लिए खुल जाएगा। 31 अक्टूबर को खुद पीएम इसका लोकार्पण करेंगे। स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के नाम के इस प्रोजेक्ट में कोटा के भी एक युवा इंजीनियर की भूमिका रही है, जो पिछले डेढ़ साल से वहां सेवाएं दे रहे हैं।

दादाबाड़ी निवासी नमन जैन (23) एलएंडटी कंपनी में सीनियर इंजीनियर के नाते जुलाई, 2017 से इस साइट पर है।  नमन के मुताबिक, नर्मदा जिले के केवड़िया गांव में यह साइट है, जहां स्टेच्यू बन रहा है। यह पूरा जंगल है और वड़ोदरा से करीब 80 किमी दूर है। यहां करीब 300 इंजीनियर और 4000 मजदूर रात-दिन काम करते हैं। दुनिया में सबसे कम समय में पूरा करने का रिकॉर्ड भी इसी स्टेच्यू के नाम है, यह सिर्फ 4 साल में तैयार हो गया।

यह जगह जंगल के बीचोंबीच है, पहाड़ है और डेम है। यहां कई बार विंड स्पीड 100 किमी से भी तेज होती है। ऐसे में हमें कई बार पैनल का काम रोकना तक पड़ता था। यहां नेटवर्क की बड़ी समस्या है। पहले सिर्फ बीएसएनएल का नेटवर्क हुआ करता था, जो भी कई-कई दिन तक गायब हो जाता था। ऐसे में वॉकी-टॉकी ही एकमात्र सहारा हुआ करते थे।

करीब 6 किमी एरिया में हमारी साइट फैली हुई है, ऐसे में एक से दूसरी जगह संपर्क करने का जरिया वॉकी-टॉकी ही होते थे। साइट से करीब 30 किमी दूर इंजीनियरों के ठहरने के लिए गेस्ट हाउस है, वहीं से रोजाना आना और जाना पड़ता है। वर्ष 2014 में जब से काम शुरू हुआ है, आज तक बंद नहीं हुआ। चाहे कोई भी त्योहार हो। मैं खुद यहां आने के बाद एक बार ही घर जा सका हूं।

भूकंप आए या बिजली गिरे स्टेच्यू पर आंच नहीं 
स्टेच्यू इतना अत्याधुनिक तकनीक पर बना हुआ है कि भूकंप आए या बिजली गिरे… इसे कोई आंच नहीं आएगी। इसके नीचे एक म्यूजियम भी बनाया गया है। प्रतिमा के अंदर भी 2 हाई स्पीड लिफ्ट लगी है और छाती के पास झरोखे बने हैं, जहां से जाकर आमजन डेम को निहार सकेंगे।

इस पूरी प्रतिमा में 550 ब्लॉक है, प्रत्येक ब्लॉक का वजन करीब 10 मीट्रिक टन है। मजेदार बात यह है कि इसके निर्माण में पूरी दुनिया की टीम लगी है। इंजीनियर व मजदूर भारतीय हैं, कंसल्टेंट यूके से हैं, दो वेंडर चाइना और जर्मनी से हैं और एक क्लाइंट यूएसए से है।

इसमें लेजर लाइटिंग भी है, जो पहली बार 31 अक्टूबर को ही शुरू होगी। स्टेच्यू जहां बन रहा है, यह पूरा आदिवासी इलाका है, लेकिन इसके निर्माण के साथ ही यहां अन्य विकास कार्य भी तेजी से हो रहे हैं।