शिक्षा पद्धति को राष्ट्रोन्मुख बनाने के लिए चेतना जरूरी- डॉ. सिंह

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-कृष्ण बलदेव हाडा-
कोटा।
भारतीय शिक्षा बोर्ड के कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ. एन पी सिंह ने कहा कि वर्तमान शिक्षा में भारतवर्ष के मूल संस्कार, संस्कृति और मानव मूल्यों को दरकिनार कर दिया गया है जिसके फ़लस्वरूप आज की पीढ़ी भौतिकवादी एवं विघटनकारी होती जा रही है इसलिए हमें अभी चेतना होगा और शिक्षा पद्धति को राष्ट्रोन्मुखी बनाना होगा।

कोटा में बुधवार को शिक्षा की आजादी विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉ. सिंह ने कहा कि संस्कारविहीन समाज को बनने से रोकने के लिए हमें अभी जागृत होने की आवश्यकता है और शिक्षा पद्धति को राष्ट्रोन्मुख बनाकर सही दिशा देनी होगी ताकि युवा पीढ़ी भौतिकवाद की और नहीं भटके।

भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी डॉ. सिंह ने वेद-शास्त्रों आदि के विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख करते हुए शिक्षा में परिवर्तन की आवश्यकता को समझाया। डॉ. सिंह ने कहा कि भारत सरकार द्वारा स्थापित भारतीय शिक्षा बोर्ड के गठन का मुख्य उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा से ही बच्चों को संस्कार युक्त ज्ञान प्रदान करना है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए बोर्ड़ अपने स्तर पर पाठ्य पुस्तकों का प्रकाशन करता है।

राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राध्यापक प्रोफेसर बी पी सुनेजा ने प्रजेंटशन के माध्यम से ” आधुनिक शिक्षा: यह कहां आ गए हम ? ” विषय पर रोचक एवं प्रभावी तरीके से प्रस्तुति दी जिसमें उन्होंने बताया कि विभिन्न महापुरुषों और दार्शनिकों ने शिक्षा को लेकर अपनी क्या अपेक्षाएं रखी थी।

साथ ही यह भी व्याख्या की वैदिक काल में किस तरह से शिक्षा में पर्यावरण, समाज सेवा एवं राष्ट्रभक्ति को समाहित किया गया था, किंतु शनै-शनै हमने शिक्षा का पाश्चात्य करण कर दिया जिसके फलस्वरूप आज समूचा विश्व, पृथ्वी अनेकानेक का त्रसादिया झैल रहे है। प्रो.सुनेजा ने दावा किया कि नई शिक्षा नीति इस परिपेक्ष में एक बड़ा क्रांतिकारी कदम साबित होगी