माया से होता है मित्रता का नाश : आर्यिका सौम्यनन्दिनी

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कोटा। महावीर नगर विस्तार योजना दिगम्बर जैन मंदिर में आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ने प्रवचन करते हुए कहा कि शरीर की शुद्धि पानी, अग्नि, मिट्टी आदि से होती है। जहां धर्म है, वहां शुद्धि है। उन्होंने कहा कि मन का सरल होना जरूरी है। क्योंकि माया से मित्रता का नाश होता है। जैन धर्म में तप को मोक्ष का मार्ग बताया गया है।

उन्होंने कहा कि अगर कर्मो की निर्जरा होगी तो आत्म शुद्धि होगी। तप के माध्यम से मन, वचन, काया आदि तीन योग को एकाग्र किया जाता है। संपूर्ण कर्मो का क्षय हो जाना मोक्ष है। मोक्ष के ज्ञान, दर्शन चरित्र और तप ये चार द्वार है। नव तत्वों में जीव, अजीव तो हैं ही। उनके बाद जो सात तत्व हैं, वे साधना की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। उनमें मुख्यत दो हैं- बंध और मोक्ष। बंध का अपना परिवार है और मोक्ष का अपना परिवार है।

उन्होंने कहा कि पुण्य, पाप और आश्रव बंध का परिवार है। संवर और निर्जरा मोक्ष का परिवार है। जितनी दैवी संपदा हमारे पास बढ़ेगी, हम मोक्ष की तरफ आगे बढ़ जाएंगे और जितनी आसुरी संपदा हमारे पास बढ़ेगी, हम मोक्ष की ओर, बंधन की ओर आगे बढ़ जाएंगे। विनय के तीन साध्य है। नमन और झुकना एक जैसा नहीं है। इसलिए विनम्र बनो, कोमल बनो। मन में किसी के प्रति कोई भी छल-कपट नहीं होना चाहिए।