मां की बीमारी से दुखी कुणाल बनेगा डॉक्टर

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कोटा। बचपन में बच्चे से सबसे ज्यादा पूछे जाने वाला सवाल होता है बड़े होकर क्या बनोगे, लेकिन इस सवाल का जवाब कई बार बच्चे की इच्छा या विवेक नहीं बल्कि परिस्थितियां तय कर देती हैं। ऐसे हालात हो जाते हैं कि जीवन की दिशा बदल जाती है। ऐसा ही कुछ हुआ है एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट के छात्र कुणाल कुमावत के साथ।

डॉक्टर बनने या नहीं बनना कभी सोचा नहीं था, लेकिन घर में मां की बीमारी और उन्हें दुखी होते देख डॉक्टर बनने का संकल्प लिया और अब यह संकल्प पूरा भी होने जा रहा है। कुणाल ने नीट आल इंडिया रैंक 2157, ओबीसी कैटेगिरी रैंक 603 प्राप्त की है तथा एम्स में 2536 रैंक प्राप्त की है।

हर तीसरे दिन होता है डायलिसिस
कुणाल ने बताया कि करीब 11 साल से मां को सरोज देवी को किडनी की बीमारी है। कभी-कभी तबियत बहुत अधिक बिगड़ जाती है। लगातार इलाज चल रहा है। शुरूआत के चार साल तक तो गोली दवाइयां चली, इसके बाद हर तीसरे दिन डायलिसिस होता है। अब तक 700 से ज्यादा बार डायलिसिस हो चुके हैं और हर डायलिसिस में करीब 2500 रूपए का खर्च आता है, क्योंकि यहां सरकारी अस्पतालों में डायलिसिस की सुविधा नहीं है, इसलिए प्राइवेट डायलिसिस करवाना पड़ता है।

पिता राधेश्याम कुमावत झुंझुनूं में ही टीवी, डीवीडी व अन्य इलेक्ट्रोनिक उपकरण ठीक करने का काम करते हैं। एलईडी और आधुनिक उपकरण आने के बाद अब रिपेयरिंग का काम कम हो रहा है। ऐसे में आमदनी घट रही है। मां की बीमारी में हालत देखी नहीं जाती, इसीलिए मैंने डॉक्टर बनने की सोची ताकि लोगों के दुख दर्द दूर कर सकूं।

कुणाल ने बताया कि 12वीं तक की पढ़ाई झुंझुनूं में ही हुई। यहां कक्षा छह तक पढ़ने के बाद पारिवारिक स्थिति देखते हुए स्कूल ने फीस माफ की। दसवीं कक्षा में मैंने 96 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। इसके बाद शिक्षकों ने मुझे सांइस लेने को कहा और मैंने भी उन्हें डॉक्टर बनने की इच्छा जताई। इसके बाद 12वीं में प्रदेश स्तर पर तीसरी मेरिट में रहा और 98 प्रतिशत अंक प्राप्त किए।

शिक्षकों के कहने पर ही कोटा आकर पढ़ाई करने का निर्णय लिया। यहां भी एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट द्वारा मेरी प्रतिभा को देखते हुए फीस आधी कर दी गई। एलन टीचर्स का सपोर्ट अच्छा रहा और यहां मेरी तैयारी पर पूरी तरह से ध्यान दिया गया। कोटा में पढ़ाई के दौरान भी मैं कई बार मां से मिलने के लिए झुंझुनूं आता था।

मां से मिलने के लिए शनिवार का इंतजार करता
कई बार तबियत खराब होती तो मां मुझे याद करती और मैं शनिवार का इंतजार करता। क्लास खत्म होते ही झुंझुनूं रवाना हो जाता, रविवार को मिलकर फिर कोटा आ जाता और यहां पढ़ाई करता। इस दौड़भाग के बावजूद मैंने कभी कोई टेस्ट मिस नहीं किया। कक्षाओं में भी पूरी तरह उपस्थित रहने की कोशिश रही।