भगवान् श्रीकृष्ण का अनुग्रह ही पुष्टि और प्रेमप्रधान भक्ति ही पुष्टिमार्ग है

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कोटा। शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ श्री बड़े मथुराधीश टेंपल बोर्ड की ओर से युवराज गोस्वामी मिलन कुमार बावा के सान्निध्य में छप्पनभोग परिसर में चल रही श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के छठे दिन विभिन्न प्रसंगों का सुंदर चित्रण किया गया।

पुष्टिमार्गीय रीति से कथाव्यास तुलसीदास शास्त्री श्रीमद्गोकुल ने गुरुवार को महारास एवं रुक्मिणी विवाह के प्रसंग का वर्णन किया। श्रीमद्भागवत महापुराण कथा पुष्टिमार्गीय रीति से शुरु हुई। जिसमें सुबोधिनी भागवतार्थ प्रकरण आदि अनेक ग्रंथ के अनुसार कथा और वचनामृत किया जा गया। इस दौरान अष्टसखा द्वारा रचित कीर्तन भी हुए।

इस दौरान कथाव्यास तुलसीदास शास्त्री श्रीमद्गोकुल ने कहा कि भगवान् श्रीकृष्ण का अनुग्रह ही पुष्टि है। भगवत्-कृपा के सम्मुख भगवत्-प्राप्ति में बाधा उपस्थित करने वाले काल, कर्म, स्वभाव आदि कोई भी बाधक तत्व टिक नहीं पाते हैं। शास्त्रों में भगवान् की प्राप्ति करने के ज्ञान, भक्ति आदि जो भी साधन बताए गए हैं।

उन साधनों के लिए जीव को स्वयं प्रयत्नशील होना पड़ता है, स्वयं ही इनकी साधना करनी पड़ती है। जब भगवान् अपने स्वरूप बल से, भगवद्-सामर्थ्य से जीव का उद्धार कर देते हैं तो उसे पुष्टि कहा जाता है। प्रेमप्रधान भक्ति ही पुष्टिमार्ग है।

जहां भक्ति की प्राप्ति भगवान् के विशेष अनुग्रह से, कृपा से ही संभव मानी जाती है। भगवान् जिस पर कृपा करते हैं, जिसे वे मिलना चाहते हैं, उसे ही मिलते हैं। इस विषय में जीव के प्रयत्न कोई महत्त्व नहीं रखते।

कथा की पूर्णाहुति आज: कथा विश्रांति पर गोस्वामी मिलन बावा ने श्री भागवत स्वरुप की आरती की। प्रबंधक चेतन सेठ तथा मोनू व्यास ने बताया कि कथाव्यास द्वारा प्रतिदिन 3 से 6.30 बजे तक कथा सरिता बहाई जा रही है। शुक्रवार को सुदामा चरित्र एकादश, द्वादश स्कन्ध तक की कथा के बाद पूर्णाहुति होगी।