बर्तन बनाने से पहले स्टेनलेस स्टील की क्वालिटी की जांच होगी, BIS ने लागू किए नियम

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नई दिल्ली। स्टेनलेस स्टील के बर्तन निर्माण से पहले अब स्टेनलेस स्टील की प्रोपर्टीज जैसे कि कार्बन-सल्फर, मैगनीज, निकल, फास्फोरस, नाइट्रोजन व कापर की मात्रा की जांच होगी। बर्तन बनाने में कम मोटाई वाले स्टील का इस्तेमाल नहीं हो सकेगा। आगामी सितंबर माह से स्टेनलेस स्टील के बर्तन पर क्वालिटी कंट्रोल का नियम लागू हो रहा है और इसके तहत इस प्रकार की जांच को अनिवार्य कर दिया गया है।

भारतीय मानक ब्यूरो की तरफ से क्वालिटी कंट्रोल का नियम लागू किया गया है। बर्तन बनाने के बाद उनकी क्वालिटी की भी जांच होगी। अभी स्टेनलेस स्टील के बर्तन निर्माण पर क्वालिटी कंट्रोल नहीं होने से निर्माता अपनी सुविधा और लागत के हिसाब से कच्चे माल का इस्तेमाल कर रहे थे जो स्वास्थ्य के साथ बर्तन की मजबूती को भी प्रभावित कर रहा था। नए नियम के मुताबिक स्टेनलेस स्टील में इस्तेमाल होने वाले क्रोमियम व निकेल की मात्रा क्वालिटी कंट्रोल नियम के हिसाब से तय होगी।

निश्चित मोटाई वाले स्टील का ही होगा इस्तेमाल
एक निश्चित मोटाई वाले स्टील का ही इस्तेमाल बर्तन बनाने में किया जा सकेगा। दिल्ली के बर्तन के थोक व्यापारी मनमोहन ढींगरा ने बताया कि अभी कच्चे माल को लेकर कोई नियम नहीं होने से फ्लैट स्टील को तेजाब से प्रोसेस कर उससे भी बर्तन बना दिया जाता है।

अब ऐसा मुमकिन नहीं हो सकेगा। दिल्ली स्टेनलेस स्टील ट्रेड फेडरेशन के अध्यक्ष जय कुमार बंसल ने बताया कि नए नियम के मुताबिक अब कम से कम 0.30 एमएम मोटाई वाले स्टील का ही बर्तन बन सकेगा। अभी 0.20 एमएम मोटाई वाले स्टील का भी बर्तन बनाने का काम किया जाता है। वैसे ही कम से कम 13.5 क्रोम वाले स्टील का इस्तेमाल बर्तन बनाने में होगा।

अभी कैसे होता है निर्माण?
अभी 12 क्रोम वाले से भी बर्तन बनाने का काम होता है। 12 क्रोम में सबसे कम 10.5 प्रतिशत क्रोमियम होता है जो सबसे निचले स्तर का माना जाता है। निर्माताओं ने बताया कि निकल की मात्रा के प्रतिशत में भी बदलाव किया गया है। बीआइएस के अधिकारी के मुताबिक बर्तन बनाने से पहले कच्चे माल और तैयार बर्तन दोनों के लिए क्वलिटी कंट्रोल का नियम लागू होगा।

बीआईएस के अधिकारी के मुताबिक अभी बर्तन बनाने वाले स्टेनलेस स्टील में क्या मिला है और कितनी मात्रा में मिला है, इसकी जानकारी किसी को नहीं है। उन्होंने उदाहरण के तौर पर बताया कि निकल तांबे से तीन गुना अधिक महंगा होता है और निकल बर्तन को मजबूती देता है। लेकिन महंगा होने से कई बार निकल काफी कम मिलाया जाता है।