ट्रेड जेनेरिक एवं जन औषधि की बढ़ती मांग से ब्रांडेड दवाओं की बिक्री घटी

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नई दिल्ली। Jan Aushadhi: ट्रेड जेनेरिक दवाओं की बढ़ती पैठ घरेलू फार्मास्युटिकल बाजार की मूल्य में वृद्धि पर असर डाल रही है। हाल के विश्लेषण से यह जानकारी मिली है। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के विश्लेषण के अनुसार कम से कम वित्त वर्ष 2027-28 तक ट्रेड जेनेरिक और जन औषधि से भारतीय फार्मा बाजार (आईपीएम) की वृद्धि में 70 से 110 आधार अंक की वार्षिक गिरावट आने के आसार हैं।

ट्रेड जेनेरिक दवाएं वे होती हैं, जिन्हें डॉक्टरों के प्रचार के जरिये बाजार में नहीं उतारा जाता है, बल्कि फार्मा कंपनियां इन दवाओं को सीधे वितरकों को आपूर्ति करती हैं। आम तौर पर ट्रेड जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं की तुलना में 50 से 60 फीसदी की छूट पर उपलब्ध होती हैं क्योंकि इनमें कोई मार्केटिंग व्यय नहीं होता है।

केंद्र सरकार ने ढाई साल से भी कम समय में (वित्त वर्ष 26 के अंत में) जन औषधि स्टोर की संख्या ढाई गुना बढ़ाकर 25,000 करने का लक्ष्य रखा है। नवंबर तक देश के 753 जिलों में 10,006 जन औषधि स्टोर खुल चुके हैं।

लगभग 33 फीसदी स्टोर अब दक्षिण भारत में हैं। ऐसे ज्यादा स्टोर कर्नाटक और केरल में हैं। वैसे उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा जन औषधि स्टोर (1,481) हैं। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज ने दिसंबर की एक रिपोर्ट में कहा कि सरकार वित्त वर्ष 2024 में प्रधान मंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) से 1,400 करोड़ रुपये की बिक्री योजना बना रही है।

घरेलू बाजार की कुल मात्रा में जन औषधि की हिस्सेदारी अब चार फीसदी से लेकर 4.5 फीसदी तक है। वैश्विक महामारी कोविड19 के बाद प्रति स्टोर राजस्व में सुधार हुआ है, जो बढ़ती मांग का संकेत देता है।

वर्तमान में पीएमबीजेपी की उत्पाद बास्केट में 1,965 से अधिक दवाएं और 293 चिकित्सा क्षेत्र में उपभोग की जाने वाली वस्तुएं और उपकरण शामिल हैं। जन औषधि स्टोर पर हर रोज 10 लाख से अधिक लोग पहुंचते हैं।

सरकार ने देशभर में 36 वितरकों के साथ मिलकर गुरुग्राम, बेंगलूरु, गुवाहाटी और सूरत में चार गोदामों का नेटवर्क स्थापित किया है। इंडिया रेटिंग्स के एसोसिएट डायरेक्टर कृष्णनाथ मुंडे ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पिछले 10 वर्षों के दौरान भारतीय फार्मा बाजार में 25 फीसदी से अधिक सीएजीआर के साथ ट्रेड जेनेरिक सबसे तेजी से बढ़ रहा है, जबकि इसी अवधि के दौरान फार्मा बाजार में 11 से 13 फीसदी की वृद्धि हुई है।

कोटक के विश्लेषकों का कहना है कि सिप्ला (2,000 करोड़ रुपये की वार्षिक ट्रेड जेनेरिक बिक्री) और अल्केम (1,300 करोड़ रुपये की वार्षिक ट्रेड जेनेरिक बिक्री) के अलावा ऐतिहासिक रूप से फार्मा कंपनियां 20,500 करोड़ रुपये के ट्रेड जेनेरिक बाजार में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के संबंध में अनिच्छुक रही हैं।

उन्होंने कहा कि हालांकि वॉल्यूम का लगातार जेनेरिक की ओर रुख होने की वजह से फार्मा कंपनियां तेजी से ट्रेड जेनेरिक श्रेणी पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। हाल के दिनों में मैनकाइंड, टॉरंट फार्मा और डीआरएल जैसी कंपनियों ने अपने ट्रेड जेनेरिक अनुभाग शुरू किए हैं। वर्तमान में जन औषधि और ट्रेड जेनेरिक की संयुक्त रूप से भारत के कुल दवा वॉल्यूम में लगभग 20 से 22 फीसदी की हिस्सेदारी है।