जीवन शैली को संवार दे उसका नाम है संस्कार: आर्यिका सौम्यनन्दिनी

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कोटा। परमात्मा ने हमें वह मार्ग दिखाया जिस पर चलते हुए विकृति हमारे भीतर से निकल जाए और सुसंस्कार आत्मसात हो जाए। ‘सं’ का अर्थ है आभूषण और ‘स्कार’ का तात्पर्य है जीवन में चरितार्थ करना। जो हमारी सोच, हमारी जीवन शैली को सजा-संवार दे उसका नाम है संस्कार। जो हमारी चारित्रिक सुंदरता में चार चांद लगा दे उसे कहते हैं संस्कार।

यह बात दिगंबर जैन मन्दिर महावीर नगर विस्तार योजना में चातुर्मास कर रही आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ने प्रवचन करते हुए कही। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति का व्यक्तित्व कैसे ऊंचा उठे, यह कला हमें परमात्मा ने दी है। हमें पाप रहित जीवन शैली बताई है, उसका पालन करें।

आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ने भीतर और बाहर से एक सरीखा चरित्र अपनाने की सीख देते हुए कहा कि मंदिर, उपाश्रय, प्रवचन सभा में कुछ और, घर में, दोस्तों के साथ, संसार की महफिल में कुछ और, मनुष्य का यह बहुरूपियापन धर्म मार्ग में नहीं चलेगा। दो नावों पर पैर रखकर चलने वाला जीवन में कभी सफल नहीं हो सकता।

उन्होंने कहा कि आपका खान-पान सात्विक हो, पहनावा-ओढ़ावा मर्यादित हो, बोली विनम्र हो, निरर्थक शब्द न बोलें। सैर करने जाएं तो ऐसे स्थानों पर जहां संस्कारों की रक्षा होती हो। ऐसी जगह न जाओ जहां संस्कारों का दिवाला निकाला जा रहा हो। दोस्तों से मिलो अवश्य पर केवल औपचारिकता या दिखावे के लिए नहीं, आप उसे जीवन जीने की कला बताओ।

माताजी ने कहा कि अपनी संगत गुणवानों से, सुसंस्कारियों से करें। कमाओ पर आवश्यकता के अनुरूप ही भोगो, अपने बच्चों को स्कूली ज्ञान के साथ धर्म, परिवार की शिक्षा दें। सबको अपना मानो, सबसे प्रेम करो। अहिंसा को अपने जीवन में आत्मसात करो। पानी घी से ज्यादा कीमती है, इसलिए सावधानी से उपयोग करना चाहिए।