जीएसटी काउंसिल की बैठक 22 को, दिखेगी चुनाव नतीजों की छाप

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नई दिल्ली। जीएसटी काउंसिल की अब तक हुई बैठकों में सभी फैसले आम राय से हुए हैं और एक बार भी मतदान की नौबत नहीं आयी। लेकिन आने वाली बैठकों में यह परंपरा टूट सकती है। पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव के परिणाम के बाद काउंसिल में समीकरण बदलना तय है।

माना जा रहा है कि इन परिणामों की छाप काउंसिल की आगामी बैठकों में देखने को मिल सकती है। वित्त मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में जीएसटी काउंसिल की 30वीं बैठक 22 दिसंबर को नई दिल्ली में होने जा रही है। यह बैठक कई मामलों में खास होगी। यह पहली बैठक होगी जिसमें वित्त सचिव हसमुख अढिया मौजूद नहीं होंगे।

अढिया की जगह राजस्व सचिव बने अजय भूषण पांडेय जीएसटी काउंसिल के सचिव के रूप में पहली बार इस बैठक में शामिल होंगे। सबसे अहम बात तो यह है कि पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के बाद काउंसिल में सियासी समीकरण बदले हुए नजर आएंगे। अब काउंसिल में कांग्रेस पार्टी के शासन वाले तीन नए राज्यों के वित्त मंत्री शामिल हो जाएंगे।

ऐसे में विपक्ष शासित राज्यों का खेमा मजबूत होने से विवादित मुद्दों पर आम राय बनाना मुश्किल हो जाएगा। काउंसिल के समक्ष चीनी पर सेस लगाने और आपदा सेस लगाने जैसे प्रस्ताव लंबित हैं जबकि रियल एस्टेट, पेट्रोलियम उत्पादों और शराब को भी जीएसटी के दायरे में लाने की चुनौती है।

कांग्रेस पार्टी जीएसटी को लेकर सरकार पर हमलावर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो जीएसटी को ‘गब्बर सिंह टैक्स’ तक करार दिया है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के रुख को देखते हुए जीएसटी काउंसिल की आगामी बैठकों में विपक्षी पार्टी शासित प्रदेशों के वित्त मंत्री केंद्र को घेरने की कोशिश कर सकते हैं।

कांग्रेस ने चुनाव में भी वादा किया था कि सत्ता में आने पर वह जीएसटी को और सरल बनाएगी।विपक्षी दलों के शासन वाले राज्यों के वित्त मंत्री पहले भी जीएसटी काउंसिल की बैठकों में कई मुद्दों पर असहमति जता चुके हैं जिसके चलते फैसले लेने में विलंब भी हुआ।

खासकर पिछले साल गुजरात विधान सभा चुनाव से ठीक पहले हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में कांग्रेस शासित राज्यों के वित्त मंत्रियों ने मुखर स्वर में सरकार के कई प्रस्तावों पर असहमति जतायी थी। इसी तरह पश्चिम बंगाल और केरल के वित्त मंत्री भी समय-समय पर लेकर अपनी असहमति प्रकट करते रहे हैं।