जब 8 घंटे में हेपेटाइटिस जांच के बाद इलाज शुरू हो सकता है तो क्यों लगते हैं हफ़्तों

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नई दिल्ली। हेपेटाइटिस की जाँच और इलाज आरम्भ करने के मध्य 8 घंटे 12 मिनट के औसत समय से अधिक नहीं आना चाहिए। उन्होंने शोध के ज़रिए यह मणिपुर में कर के दिखाया कि जिस दिन व्यक्ति हेपेटाइटिस जाँच करवाने आती/ आता है, उसी दिन सभी जाँच प्रक्रिया पूरी करके, यदि वह पॉज़िटिव है तो, इलाज आरम्भ किया जा सकता है।

सवाल यह है कि फिर क्यों हेपेटाइटिस जाँच और इलाज शुरू होने के मध्य पहले 30-45 दिन लगते थे और अब 5-7 दिन लगते हैं? बारम्बार हेपेटाइटिस से संक्रमित व्यक्ति को अस्पताल के चक्कर लगवाना, हेपेटाइटिस इलाज पूरा करने में एक बड़ा रोड़ा है। यदि सरकारों को 2030 तक वाइरल हेपेटाइटिस का उन्मूलन करना है तो यह ज़रूरी है कि बेवजह विलम्ब न हो और पूरी कार्यकुशलता से जाँच-इलाज और अन्य देखभाल और सहयोग, प्रभावित व्यक्ति को दिया जाए।

यह कहना है मणिपुर के शोधकर्ता नलिनीकांता राज कुमार का जो कम्यूनिटी नेटवर्क फ़ॉर एम्पावरमेंट का नेतृत्व करते हैं, और हेपेटाइटिस और एचआईवी समुदाय को प्रभावित करने वाले मुद्दों को बहादुरी से उठाते आए हैं।

जर्नल ऑफ हेपेटोलाजी के जुलाई 2022 माह में प्रकाशित यह शोध सभी को आइना दिखाता है क्योंकि अनावश्यक विलम्ब एक बड़ी अड़चन है जिसके कारण लोग जाँच-इलाज पूरा करवा नहीं पाते। रोगी के लिए कष्टदायक व्यवस्था, जिसमें न केवल उसे इलाज मिलने में देरी होती है बल्कि व्यर्थ पैसा और पीड़ा झेलनी पड़ती है, संक्रमण फैलने का ख़तरा भी बढ़ाती है, और इसकी सम्भावना भी बढ़ाती है कि रोगी इलाज को छोड़ दे और पूरा करने में असमर्थ हो जाए।

नलिनीकांता ने सीएनएस से कहा कि ”यदि हम चाहते हैं कि सरकार के वादे के अनुसार 2030 तक हेपटाइटिस का उन्मूलन हो सके, तो राष्ट्रीय वाइरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम को एक दिन में सभी जाँच और इलाज आरम्भ करने की प्रक्रिया को पूरा करना होगा।”

यह शोध मणिपुर में हुआ जिसमें 8 घंटे 12 मिनट के भीतर, लोगों की हेपेटाइटिस-बी और हेपेटाइटिस-सी की प्रारम्भिक जाँच और वाइरल लोड जाँच हुई और आवश्यकतानुसार राष्ट्रीय वाइरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम के तहत इलाज आरम्भ हुआ (और जो लोग हेपेटाइटिस-बी के लिए नेगेटिव थे उन्हें हेपटाइटिस-बी टीका मिला)।

हेपेटाइटिस-सी: सबकी हेपेटाइटिस-सी एंटीबॉडी जाँच हुई, जो लोग पोसिटिव थे उनकी आरएनए वाइरल लोड जाँच हुई (मोलबीयो के ट्रूनैट मशीन द्वारा)। एंटीबॉडी जाँच में यह नहीं भिन्न हो पाता है कि किसके हेपेटाइटिस-सी संक्रमण को 6 माह से कम हुआ है (“अक्यूट संक्रमण” – जो लगभग 30% लोगों में बिना इलाज के ही शरीर की प्रतिरोधकता से सही हो जाएगा), किसके हेपेटाइटिस-सी संक्रमण को 6 माह से अधिक हो चुके हैं (दीर्घकालिक या “क्रॉनिक संक्रमण” – जिसे इलाज की सख़्त ज़रूरत है), और किसको पूर्व में हेपेटाइटिस संक्रमण हुआ था पर वर्तमान में वह सही हो चुका है और स्वस्थ है (पर एंटीबॉडी हैं जिसके कारण पहली जाँच में वह एंटीबॉडी-पॉज़िटिव निकला था)। क्योंकि एंटीबॉडी जाँच से, अक्यूट, क्रॉनिक और पूर्व में संक्रमित लोगों में भेद नहीं हो पता, इसीलिए वाइरल लोड जाँच ज़रूरी है।

जो लोग वाइरल लोड जाँच में हेपेटाइटिस-सी के लिए पॉज़िटिव पाए गए उनका राष्ट्रीय वाइरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम के मानक के अनुरूप, सोफ़ोसबूविर और डक्लासटस्विर दवाओं से इलाज आरम्भ हुआ।

हेपटाइटिस-बी: जो लोग हेपेटाइटिस-बी के लिए नेगेटिव पाए गए उनको विश्व स्वास्थ्य संगठन और राष्ट्रीय वाइरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम के मानक के तहत, टीकाकरण दिया गया (जिसकी 3 खुराक लगती हैं – 0, 7, और 21 दिन पर)।

जिन लोगों की रिपोर्ट हेपेटाइटिस बी सरफ़ेस एंटीजन के किए पॉज़िटिव आयी थी, उनकी वाइरल लोड डीएनए जाँच रेफ़्रेन्स लैब्रॉटॉरी भेजी गयीं और राष्ट्रीय वाइरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम के मानक के अनुरूप उनका चिकित्सकीय प्रबंधन हुआ।

  • इस पाइलट शोध की मुख्य बातेंः
    जो लोग मणिपुर के शोध-स्थान में इस शोध में भाग लेने के किए योग्य थे उनमें से 95% ने इसमें भाग लिया और उनकी हेपेटाइटिस-बी और हेपेटाइटिस-सी प्रारम्भिक जाँच हुई।
  • इनमें से 40% हेपेटाइटिस-सी एंटीबॉडी के लिए पोसिटिव थे, इन सभी की वाइरल लोड आरएनए जाँच हुई, जिसके बाद 61.5% पॉज़िटिव निकले। इनमें से 96% को “वाइरीमिया” थी इसीलिए इनका राष्ट्रीय वाइरल हेपेटाइटिस नियंत्रण कार्यक्रम के मानक के अनुरूप, सोफ़ोसबूविर और डक्लासटस्विर दवाओं से इलाज आरम्भ हुआ।
  • प्रारम्भिक जाँच और हेपेटाइटिस-सी के इलाज शुरू करने के दरमियान 8 घंटे 12 मिनट का औसत समय रहा
  • 6.1% लोग हेपेटाइटिस-बी सरफ़ेस एंटीजन के लिए पॉज़िटिव निकले। जो लोग हेपेटाइटिस-बी के लिए नेगेटिव थे उनमें से 97% का हेपेटाइटिस-बी टीकाकरण नहीं हुआ था। इन सभी को हेपेटाइटिस-बी टीके की पहली खुराक दी गयी।
  • मणिपुर में जो लोग नशीली ‘ड्रग्स’ को सुई द्वारा लेते हैं उनमें हेपेटाइटिस-सी संक्रमण का दर 65% है। परंतु लम्बी जाँच-इलाज प्रक्रिया के चलते, बहुत कम लोग हेपेटाइटिस-सी का इलाज पूरा कर पाते हैं। इसीलिए शोधकर्ताओं ने यह शोध द्वारा सिद्ध किया कि कैसे मात्र 8 घंटे में जाँच से इलाज शुरू होने की प्रक्रिया पूरी की का सकती है।
  • मशीन हर ज़िले में है पर उसे चलाने के लिए प्रशिक्षित स्वस्थ्यकर्मी नहीं है
  • प्रारम्भिक एंटीबॉडी जाँच सिर्फ़ पर्याप्त नहीं है क्योंकि जो लोग इसमें पॉज़िटिव निकलते हैं उनकी वाइरल लोड आरएनए जाँच ज़रूरी है।