छोटे बच्चों में होने वाली दृष्टिहीनता का प्रमुख कारण ‘रेटिनोपैथी ऑफ प्री मेच्योरिटी’

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आरओपी की पूर्व संध्या पर पोस्टर विमोचन करते कोटा के नेत्र चिकित्सक।

वर्ल्ड प्री मेच्योरिटी डे की पूर्व संध्या पर परिचर्चा

कोटा। सुवि नेत्र चिकित्सालय एवं लेसिक लेजर तलवंडी कोटा की ओर से वर्ल्ड प्रीमेच्योरिटी डे की पूर्व संध्या पर मंगलवार को जागरूकता परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। समूचे विश्व में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा को विश्व प्रीमेच्योरिटी डे 17 नवम्बर को मनाया जाता है। रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी विश्वभर में छोटे बच्चों में होने वाली अंधता/दृष्टिहीनता का प्रमुख कारण है।

रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी नवजात शिशुओं के आंख के पर्दो का प्रभावित करने वाली एक विशेष बीमारी है, जो समय से पहले (37 सप्ताह से पूर्व) जन्में बच्चों में हो सकती हैे। रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी (आर.ओ.पी.) विश्वभर में बच्चों में होने वाली अंधता/दृष्टिहीनता का प्रमुख कारण है। जिन बच्चों का जन्म 37 सप्ताह से पहले हुआ है,उन्हें जन्म के दो से तीन सप्ताह में पर्दे की विस्तृत जांच करना आवश्यक है। जिन बच्चों का जन्म 30 सप्ताह से पहले हुआ है अथवा जिनका वजन 1200 ग्राम से कम है, उन्हें जन्म के पन्द्रह से बीस दिनों के बीच आंख के पर्दे की विस्तृत जांच नेत्र रेटिना विशेषज्ञ द्वारा करवाना आवश्यक है।

रेटिनल स्क्रीनिंग में आर.ओ.पी. होने पर आँख के पर्दे का लेजर, क्रायो थैरेपी, एन्टी.वेजेएफ इंजेक्शन एवं आंख के पर्दे की शल्य चिकित्सा द्वारा इस बीमारी के दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। इस संबंध में आर.ओ.पी स्क्रीनिंग, नेत्र एवं शिशु रोग विशेषज्ञ द्वारा समाज में जागरूकता बढ़ाकर एवं प्रीमेच्योर शिशुओं में जन्म के 2 से 3 सप्ताह के भीतर आंख के पर्दे की जांच करवाकर अंधता को रोका जा सकता है।

आर.ओ. पी. से पीड़ित बच्चों में रेटिना में असामान्य रक्त वाहिकाओं को बढ़ने का कारण अनेको नेत्र संबंधी समस्या हो सकती है एवं एडवांस्ड आर.ओ.पी. के कारण अंधापन भी हो सकता है। सुवि नेत्र चिकित्सालय एवं लेसिक लेजर सेन्टर कोटा संस्थान के निदेशक एवं वरिष्ठ नेत्र सर्जन डॉ. सुरेश पाण्डेय ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत जैसे विकासशील देश में रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्यूरिटी एक चौथाई प्रीमेच्यूर बच्चों में नेत्रहीनता का मुख्य कारण है।

डॉ. पाण्डेय ने बताया कि भारत में 2 करोड़ 60 लाख बच्चे प्रत्येक वर्ष जन्म लेते है, इनमें से 20 लाख बच्चों का वजन 2 किग्रा. से कम होता है। यह बच्चे जागरूकता के अभाव में रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी नामक रोग से पीड़ित होकर आँखों की रोशनी खो सकते है। जिन बच्चों का वजन जन्म के समय 2 किग्रा. से कम है उन 50 प्रतिशत बच्चों में आर.ओ.पी. नामक गंभीर नेत्र रोग होने के संभावना रहती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में आर.ओ.पी. के कारण प्रत्येक वर्ष लगभग 5 लाख बच्चों की आँखों की रोशनी प्रभावित होती है। उपचार के अभाव में इन बच्चों की रोशनी हमेशा के लिए समाप्त हो सकती है। डॉ. विदुषी पाण्डेय ने बताया कि रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी नवजात शिशुओं के आंख के पर्दे (रेटिना) को प्रभावित करने वाली विशेष अवस्था है।

प्रीमेच्यूर बच्चों में रेटिना पूर्ण तरह से विकसित न होने के कारण रेटिना में रक्त के नये स्रोत उत्पन्न होते है, जो कि कमजोर होते है और रक्त स्राव करते है। इस रक्तस्राव के कारण रेटिना में निशान एवं खींचाव बनता है। इस वजह से इन बच्चों में में नजर में कमजोरी तिरछापन, सुस्त आँखें, मोतियाबिन्द, कालापानी एवं पर्दे का उखड़ना इत्यादि रोग होने का खतरा बना रहता है।

आंख के पर्दे की जाँच : रेटिना सर्जन डॉ. दीपेश छबलानी ने बताया कि जिन बच्चों का जन्म 37 सप्ताह से पहले हुआ हो। बच्चे को जन्म के बाद लम्बे समय तक ऑक्सीजन दिया गया हो। जुड़वाँ बच्चों में, एनीमिया, इंफेक्शन एवं जन्म के समय साँस की तकलीफ से पीड़ित नवजात बच्चों में आर.ओ.पी. का खतरा बन सकता है। उन्होंने बताया कि आर.ओ.पी. का पता लगाने हेतु आंख के पर्दे की जाँच (स्क्रीनिंग) करनी चाहिए।

भारत में 35 लाख प्री टर्म बच्चों का जन्म : नेत्र सर्जन डॉ. एस. के. गुप्ता ने बताया कि आर.ओ.पी. से पीड़ित बच्चों में आँखों में दृष्टि दोष (मायोपिया), नेत्रों का तिरछापन, सुस्त आँख, आँख का रक्तस्राव, मोतियाबिन्द, ग्लूकोमा, रेटिनल डिटेचमेन्ट (पर्दे का उखड़ना) आदि समस्याऐं हो सकती है।’विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में प्रत्येक वर्ष 35 लाख प्री टर्म बच्चों का जन्म होता है। यह संख्या विश्व में सबसे अधिक है।’

इसके बाद चीन 11 लाख , नाईजीरिया 7.7 लाख , पाकिस्तान 7.4 लाखए इंडोनेशिया, 6.7 लाख, आदि देश हैं। देश में छोटे बच्चों की चिकित्सा सुविधाओं एवं नियोनेटल केयर के बढ़ते अब प्री मैच्योर बच्चों की जान बचा पाना अब सम्भव हो रहा है।

अंधता को रोका जा सकता है : समाज में जागरुकता बढ़ाकर, शिशु रोग विशषज्ञों एवम् नेत्र विशेषज्ञों के साझा प्रयासों से रेटिनोपथी ऑफ प्री मेच्योरीटी से होने वाली अंधता को रोका जा सकता है। कार्यक्रम के दौरान रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमेच्योरिटी (आर.ओ.पी) पर जागरूकता पोस्टर का विमोचन भी किया गया एवं पूछे गये प्रश्नों के उत्तर भी दिये गये।