चुनावी साल में राजनीतिक रंगत लेगा ईआरसीपी का मसला

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-कृष्ण बलदेव हाडा-
ERCP issue: राजस्थान विधानसभा के इस साल के अंत में होने वाले चुनाव के मद्देनजर आने वाले समय में पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) का मसला बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है। बने भी क्यों नहीं? वैसे भी यह राजस्थान के 13 बड़े जिलों के ग्रामीण अंचल में रहने वाले लाखों किसान परिवारों के भविष्य से जुड़ा हुआ है।

क्योंकि यह नहर परियोजना इन जिलों की लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाने और परियोजना से जुड़े सैंकड़ों गांवों के लोगों को पीने के पानी की समस्या के दीर्घकालीन निस्तारण से जुड़ा हुआ मुद्दा है। वैसे भी पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना का स्वरूप इतना बड़ा है कि यदि इस परियोजना के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध करवाकर आज से इसका काम द्रुतगति से शुरू कर दिया जाए तब भी इस परियोजना का काम वर्ष 2050 के बाद ही पूरा हो पाएगा।

चम्बल और उसकी सहायक नदियों को जोड़कर पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश का सहयोग लेकर श्रीमती वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में बनी इस परियोजना का काम राजस्थान में जमीनी स्तर पर अपेक्षित गति नहीं पकड़ पाया है। जबकि इसके विपरीत मध्यप्रदेश में कुछ साल पहले चंबल की सहायक नदियों पर सिंचाई के लिए बांध बनाये हैं, परंतु अब वहां भी काम मंथर पड़ गया है।

राजस्थान में पिछले विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अजमेर और जयपुर में आयोजित चुनावी सभाओं में इस परियोजना को विधानसभा चुनाव के बाद राष्ट्रीय योजना का दर्जा देकर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश की, लेकिन सियासी दृष्टि से इसे असली चुनावी रंगत में रंगने की भरसक कोशिश प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कर रहे हैं।

अब जब राजस्थान विधानसभा के चुनाव बिल्कुल नजदीक हैं तो वे पूर्वी राजस्थान के लाखों किसानों को इस परियोजना को अटकाने की केंद्र सरकार की रणनीति को आधार बनाते हुए यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं, कि वह किसानों के आर्थिक हितों के खिलाफ है।

यही नहीं इस परियोजना की आड़ में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहीं अधिक पश्चिमी राजस्थान यानी मारवाड़ की राजनीति में बीते कुछ सालों में प्रमुख प्रतिद्वंदी के रूप में उभरे छात्र राजनीति से भारतीय जनता पार्टी की मुख्यधारा वाली राजनीति में आए गजेंद्र सिंह शेखावत जो वर्तमान में अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर की संसदीय सीट से भारतीय जनता पार्टी के सांसद हैं।

शेखावत ने पिछले आम चुनाव में इस संसदीय सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी और अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत को दो लाख 74 हजार 440 मतों के अंतर से पराजित किया था।
मारवाड़ की राजनीतिक प्रतिस्पर्धा बड़ी वजह हो सकती है, जिसके चलते मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ सदैव खड़े रहते हैं और आमतौर पर किसी मौके पर उनके साथ मंच भी साझा नहीं करते।

लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जिस तरह से केंद्र से लेकर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की आंतरिक राजनीति में पिछले करीब चार सालों में प्रदेश की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी श्रीमती वसुंधरा राजे को किनारे पर लगा कर प्रदेश में नया नेतृत्व उभारने की कोशिश की जा रही है, जिससे भी इन दोनों नेताओं गहलोत व शेखावत के बीच राजनीतिक दरार ज्यादा चौड़ी होती जा रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जुगलजोड़ी की जुगलबंदी के साथ श्रीमती राजे को दरकिनार कर उनके मुकाबले में जिन कमतर दर्जे के नेता राजेंद्र सिंह राठौड़, किरोड़ी लाल मीणा, सतीश पूनिया, ओम प्रकाश माथुर के साथ-साथ गजेंद्र सिंह शेखावत को भी अगली पंक्ति में खड़े करने की कोशिश की जा रही है। उससे भी गजेंद्र सिंह शेखावत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए मुख्य निशाना पर आ गये हैं।

गजेंद्र सिंह शेखावत के निशाने पर आने की एक बड़ी वजह यह है कि पिछले आम चुनाव के बाद जब केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी नीत सरकार बनी तो उसमें गजेंद्र सिंह शेखावत को केंद्रीय जल संसाधन मंत्री के रूप में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई थी, तो वे गहलोत का आसान निशाना बन गए।

क्योंकि यह वही मंत्रालय है जिस पर मुख्य रूप से पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिलवा कर केंद्र से पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध करवाने का दायित्व है, जिसका वायदा पिछले विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अजमेर व जयपुर जिलों की चुनाव सभाओं में राजनीतिक लाभ लेने के लिए किया था लेकिन प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की करारी शिकस्त के बाद प्रधानमंत्री ने इस मसले को पूरी तरह से बिसरा दिया।

अब इसी बहाने गजेंद्र सिंह शेखावत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मुख्य निशाने पर है क्योंकि जुमलेबाजी की अपनी पुरानी आदत का निर्वहन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के मसले को भले ही भुला दिया हो लेकिन गजेंद्र सिंह शेखावत तो राजस्थान से ही सांसद हैं।

इससे बड़ी बात यह है कि उनके पास जल संसाधन मंत्रालय है लेकिन इसके बावजूद उन्होंने बीते चार सालों में इस केन्द्र सरकार के इस महत्वपूर्ण मंत्रालय का मंत्री रहते हुए प्रधानमंत्री के सामने व्यक्तिगत स्तर पर या केबीनेट स्तर पर हुई बैठकों में तो क्या किसी भी मंच से राज्य के पूर्वी हिस्से के 13 जिलों के लाखों किसान परिवारों के लिए अहम इस मसले को कभी नहीं उठाया। जबकि वे खुद के किसान का बेटा होने का दावा अकसर करते रहते हैं।