गोमय समिधा और गौ काष्ठ से पॉल्यूशन फ्री होगा अब कोटा में अंतिम संस्कार

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कोटा। Zero Pollution Funeral Schem: अब कोटा में गोबर से बनने वाली गोमय समिधा और गौ काष्ठ के जरिए अंतिम संस्कार पॉल्यूशन फ्री होगा। साथ ही इसे पूरी तरह से नि:शुल्क मुहैया कराया जाएगा। वहीं, दावा किया जा रहा है कि इसके प्रचलन में आने से लकड़ी का उपयोग कम होगा और पेड़ों का संरक्षण संभव हो सकेगा। इसके अलावा हर बार अंतिम संस्कार पर पांच पेड़ लगाने का भी संकल्प लिया गया है।

कोटा के मातेश्वरी सेवा संस्थान और जयपुर के गोमय परिवार के बीच इस संबंध में एमओयू हुआ है। मातेश्वरी सेवा संस्थान के निदेशक गोविंद राम मित्तल का कहना है कि गोमय परिवार हमें गोमय समिधा और गो काष्ठ नि:शुल्क उपलब्ध करवाएगा, जिसे हम अंतिम संस्कार करने आए लोगों को उपलब्ध करवाएंगे। इसके लिए नगर निगम ने 4 स्ट्रक्चर तैयार करवाए हैं, जिसमें अंतिम संस्कार किए जाते हैं।

बताया गया कि शुरुआत में आरकेपुरम स्थित अमर लोक और किशोरपुरा मुक्तिधाम में गोमय समिधा और गौ काष्ठ के जरिए अंतिम संस्कार होंगे। योजना के मुताबिक इसे कोटा के एक दर्जन अन्य मुक्तिधामों में भी लागू किया जाएगा। आम जनता को गोमय समिधा और गौ काष्ठ के प्रति प्रोत्साहित करने और जागरूक करने के लिए इसे नि:शुल्क देने का निर्णय लिया गया है। वर्तमान में जयपुर में यह योजना लागू है।

सीताराम अग्रवाल ने बताया कि एक व्यक्ति के अंतिम संस्कार में करीब 500 से 600 किलो लकड़ी का इस्तेमाल होता है, जबकि गोमय समिधा और गो काष्ठ के जरिए करीब 250 से 300 किलो में ही अंतिम संस्कार हो जाएगा। ऐसे में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा आधी होगी। साथ ही भारत सरकार की लैब में भी उन्होंने टेस्ट होने का दावा किया है। जिसमें बताया गया कि गोमय समिधा व गो काष्ठ के जलने से कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन कम होता है। उन्होंने कहा कि लकड़ी के मुकाबले यह 25 से 35 फीसदी कम है।

हर साल बचेंगे दो लाख पेड़: ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण की समस्या से जूझते भारत में अंतिम संस्कार के कारण भी पॉल्यूशन की समस्याएं पेश आती हैं। डॉ. सीताराम अग्रवाल का कहना है कि देश में एक करोड़ अंतिम संस्कार सालाना होते हैं। जिसके लिए दो करोड़ पेड़ों को काट दिया जाता है। ऐसे में इन से 90 लाख टन कार्बन डाई ऑक्साइड पर्यावरण में जाती है। साथ ही पेड़ों की भी कमी होती है। इन सबको गोमय समिधा या दूसरे अंतिम संस्कार के तरीकों से बचाया जा सकता है।

गौशालाओं से लगवा रहे पौधे: डॉ. अग्रवाल ने आगे कहा कि गोमय समिधा व गो काष्ठ से हो रहे फ्यूनरल पर पांच पौधे भी लगाए जाएंगे। ऐसे में दो पेड़ की बचत के साथ ही पांच नए पौधे लगेंगे। इसके लिए गौशालाओं को प्रति पौधे 500 रुपए की आर्थिक सहायता भी दी जा रही है। ऐसे में हर अंतिम संस्कार पर गौशालाओं को 2500 रुपए दिए जाएंगे। ताकि आने वाले समय में वातावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सके। उनका कहना है कि उनकी स्कीम से आने वाले 25 सालों में 10 करोड़ पेड़ बचेंगे। साथ ही 25 करोड़ नए वृक्ष लगाने का भी संकल्प लिया गया है।

गोमय समिधा और गो काष्ठ : गोमय समिधा को हवन सामग्री, गोबर और एग्रीकल्चर वेस्ट से तैयार किया जाता है। एग्रीकल्चर वेस्ट में सरसों या सोयाबीन की तूड़ी मिलाई जाती है. जिसे एक मशीन के जरिए बनाया जाता है. गोविंद राम मित्तल का कहना है कि यह लकड़ी की तरह ही मजबूत होती है। जयपुर में इसके कई प्लांट स्थापित किए गए हैं। इसी तरह से कोटा में भी प्लांट स्थापित किए जाएंगे। जबकि गो काष्ठ गौशालाओं में मौजूद वेस्ट गोबर से तैयार किया जाता है। उनकी संस्था मातेश्वरी सेवा संस्थान ने बंदा धर्मपुरा गौशाला में गो कास्ट के निर्माण का एमओयू नगर निगम कोटा से किया है।