कोरोना ने बदले ‘अंतिम संस्कार’ के तरीके, कर्मयोगी बना अंतिम यात्रा का सारथी

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कोटा। विश्वव्यापी महामारी कोराना ने दुनिया के तौर तरीके बदल कर रख दिए हैं। सगे संबंधी हों या फिर पड़ौसी मरण मौत में जाना और शोक संतप्त परिवार को ढांढस बंधाना हर कोई अपना पहला कर्तव्य समझता था। लेकिन, कोरोना के चलते अब इस औपचारिकता के मायने बदल गए हैं।

प्रशासन के नियमानुसा जहां मौत में केवल 20 व्यक्तियों के ही शामिल होने की बंदिश है। वहीं, तीये की बैठक और बारहवें की रस्म सभी रोकनी पड़ी है। आलम यह है कि कोटा शहर में प्रतिदिन होने वाली सामान्य मृत्यु ने भी कोरोना वायरस के कारण परिजनों को जीवन भर का दर्द दे दिया है।

मृतकों के परिजनों के लिए यह समय दोहरे दर्द का है, एक ओर जहां दूरदराज रहने वाले सगे संबंधी परिजनों की मौत पर भी उपस्थित नहीं हो पा रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर लॉक डाउन और कफ्र्यू के कारण प्रशासन के सख्त रवैए वह कोरोना के भय ने पड़ोसियों को भी इतना भयभीत कर दिया है की अर्थी को कंधा देने के लिए चार व्यक्तियों की उपस्थिति भी भारी पड़ रही है।

वर्तमान परिस्थितियों में उपजे माहौल के कारण अपने ही अपनों से कतरा रहे हैं। ऐसे में अगर कोई मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए अनजान लोगों की मौत की खबर सुनते ही उनके दर्द को अपना दर्द समझकर अंतिम संस्कार की व्यवस्थाओं को सहजता के साथ एक फोन पर ही उपलब्ध करवा दें यह खबर सुकून देती है।

ऐसे कठिन समय में कर्मयोगी सेवा संस्थान निष्काम कर्मयोगी की भांति कोटा शहर के शोक संतप्त परिवारों के लिए अंतिम यात्रा का सारथी बनकर आया है। संस्थान मृतक देह को सम्मानजनक रूप से पंचतत्व में विलीन करने में परिजनों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सहायक बना है। कोटा शहर में लॉकडाउन की अवधि के दौरान 22 मार्च से जून तक दो माह से अधिक समय में कईं परिवारों को कर्मयोगी सेवा संस्थान ने अपनी सेवाएं उपलब्ध कराई हैं।

संस्थान के संस्थापक राजाराम जैन कर्मयोगी तथा अलका दुलारी ने ने बताया कि लॉकडाउन की इस ढाई माह की अवधि में संस्थान ने 42 गरीब व असहाय परिवारों को निशुल्क सामग्री शव वाहन व एंबुलेंस उपलब्ध करवाकर अंतिम संस्कार की व्यवस्थाएं सुनिश्चित की हैं।

उन्होंने बताया कि पुलिस प्रशासन को सहयोग प्रदान करते हुए शहर के विभिन्न थाना क्षेत्रों से प्राप्त हुए 9 लावारिस शवों की अंत्येष्टि भी संस्थान की ओर से सम्मानजनक तरीके से सम्पन्न करई है। वहीं, शहर के 365 सक्षम परिवारों को न्यूनतम शुल्क पर फोन पर ही अंतिम संस्कार सामग्री, एंबुलेंस शव वाहन शहर के किसी भी मुक्तिधाम पर दाह संस्कार के लिए लकड़ी उपलब्ध कराई गई है। सांप्रदायिक सद्भावना की मिसाल कायम करते हुए 66 गमजदा मुस्लिम परिवारों को शव दफनाने के लिए शहर के विभिन्न कब्रिस्तान जाने हेतु निशुल्क जनाजा वाहन उपलब्ध कराया है।

कर्मयोगी ने बताया कि 16 असहाय मुस्लिम परिजनों को निशुल्क कफन दफन की सामग्री उपलब्ध कराई है। लॉकडाउन की इस अवधि के बीच में अंतिम संस्कार सामग्री, कफन अर्थी के लिए बल्ली डंडे व अंतिम संस्कार की लकड़ी का स्टॉक भी समाप्त हो चुका था। ऐसे में मंत्री शांतिकुमार धारीवाल के माध्यम से सामग्री प्राप्त की गई। कर्मयोगी सेवा संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष राजाराम जैन कर्मयोगी निरंतर अपने 8 व्यक्तियों के स्टाफ के माध्यम से शव वाहन एंबुलेंस, जनाजा वाहन वह घर पर ही सामग्री पहुंचाने का प्रबंध कर रहे हैं।