इनकी आँखों से पानी कब उतरेगा…, जानिए किसान की पीड़ा

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*आशीष मेहता
कोटा।
नदियों के किनारे, तालाबों में और पानी के बहाव क्षेत्र में बसी बस्तियों में चढ़ा भयावह पानी अब उतर चुका है। इन बस्ती के बाशिंदों को राहत पहुंचाने के लिए शहर ने जबरदस्त जीवटता का परिचय दिया। मीडिया ने भी जबरदस्त रिपोर्टिंग की, हर जगह की फोटो और विजुअल कठिन परिस्थितियों में भी लोगों तक पहुंचाए गए।

हालांकि कुछ फोटो बनाए भी गए, लेकिन पीड़ितों की संवेदना दिखाने के लिए कभी कभी जरूरी हो जाता है। प्रशासन की भूमिका भी बहुत जबरदस्त रही, खुद जिला कलेक्टर बस्तियों में घूमते नजर आए। जनप्रतिनिधि भी कोई नाव से तो कोई हवा से राहत पहुँचा रहा था। समाज सेवियों के भी राहत पहुँचाते फोटो अखबारों में खूब छपे। अब मुआवजे की तैयारी हो चुकी है।

राहत की बात है कि अब तो पानी भी उतर चुका है…
लेकिन अभी भी कुछ लोग हैं, जिनकी आँखों से पानी उतरने का नाम ही नहीं ले रहा। हाड़ौती का किसान अपनी बदहाली पर आज भी आँसू बहा रहा है। इनकी पीड़ा के लिए किसी के पास न समय है, न शब्द। इनका नुकसान इसलिए नहीं हुआ कि बहाव में, नदी में, तालाब में, नाले में खेती कर रहे थे। इनके नुकसान से पहले कोई मुनादी भी नहीं होती है।

कुछ लोग जैसे मुआवजे की आस में बरसात से पहले ढहने लायक घर बना लेते हैं (याद रखें, कुछ लोग) लेकिन बेचारा किस्मत का मारा किसान ऐसा भी कुछ नहीं करता। पानी से भरे खेत किसान की बर्बादी की कहानी खुद कह रहे हैं। यह बर्बादी बिना बुलाए, बिना गलती के हुई है।

क्या खेती की बर्बादी केवल किसान की बर्बादी है? इन किसानों से हमारे बाजारों में रौनक आती है, पैसे की हलचल होती है, इन किसानों के कारण हमें सस्ते फल, सब्जियां, अनाज उपलब्ध होते हैं, लेकिन इनकी बर्बादी से शहर में बैठा हर अनभिज्ञ है, क्योंकि मीडिया भी रोड साइड के गांवों को छोड़कर दूर नहीं जा पाता, न सही तस्वीर दिखा पाता है।

अब शहर में पढ़ने वाला किसान का बच्चा घर लौटने को मजबूर होगा तो किसी को बिटिया की शादी कैंसल करनी पड़ेगी। इन लोगों की पीड़ा हर बार की तरह इस बार भी किसी को नजर नहीं आएगी। जनप्रतिनिधि आश्वासन देंगे, प्रशासन सर्वे करने वालों को खराबा कम दिखाने के निर्देश देंगे। मीडिया को तो इनके पानी भरे खेत नजर आ ही नहीं रहे।

समाज सेवियों को भी इनको राहत पहुँचाते फोटो खिंचाने के लिए गांवों में जाना दूर नजर आएगा। किसान कुछ दिन प्रशासन से गुहार लगाएंगे, कहीं कहीं तो हो सकता है लाठी, गोली के शिकार भी हो जाएं। इसके बाद फिर से अपनी किसानी में व्यस्त हो जाएंगे। सरकारें राज्य और केंद्र की लडाई में तब तक उलझेंगी, जब तक पंचायती राज के चुनाव संपन्न न हो जाएं। लेकिन तय मानिए, सरकारी सहायता तो छोड़िए, किसानों से प्रीमियम राशि लेकर किये गए बीमे का भी पूरा क्लेम मिल जाए तो बहुत मानिए।

प्रशासन के द्वारा जो तथाकथित ‘किट’ बाढ़ प्रभावित इलाकों में बँटवाए जा रहे, क्या किसानों को भी खाद, बीज, बिजली बिल माफ़ी के रूप में कोई तथाकथित ‘किट’ मिल पाएगा। जिससे किसान अपनी जिंदगी को फिर से पटरी पर ला सके। क्या जिला कलेक्टर शहर से निकलकर सूदूर गांवों में पहुंचेंगे, स्पीकर साहब किसानों की पीड़ा को लेकर दिल्ली में अधिकारियों को कब बुलाएँगे?

विधायक, मंत्री तो अभी केवल सड़क किनारे के गांवों में दौरा कर अखबारों में फोटो छपवा रहे, वे किसानों की पीड़ा को समझेंगे? किसान को किसी से उम्मीद नहीं, वह केवल अपने दम पर जीता है, फिर से बिना सहयोग के खड़ा होकर दिखा देगा, लेकिन अब लोगों की दोगलापंती उजागर करने का समय है, जो ऋण माफ़ी को पैसे की बर्बादी कहते हैं।