थोक महंगाई जून में साढ़े चार साल के सबसे ऊंचे स्तर पर

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  • मई के मुकाबले जून में सब्जियां 3 गुना से भी ज्यादा महंगी
  • सब्जियों की महंगाई दर 2.51% से बढ़कर 8.12% रही
  • आलू की महंगाई दर 99.02% जो अब तक का सबसे उच्च स्तर

नई दिल्ली। थोक महंगाई जून में बढ़कर 5.77% हो गई जो साढ़े चार साल का सबसे उच्च स्तर है। इससे पहले दिसंबर 2013 में यह सबसे ज्यादा 5.88% दर्ज की गई। मई 2018 में यह 4.43% रही। थोक महंगाई दर में तीसरे महीने बढ़ोतरी हुई है। अप्रैल से इसमें लगातार इजाफा हो रहा है।

जून में सब्जियां और ईंधन ज्यादा महंगे हुए। हालांकि, दालों के रेट लगातार घट रहे हैं। दालों की महंगाई दर जून में माइनस (-)20.23% रही। अप्रैल के लिए थोक महंगाई दर 3.18% से संशोधित कर 3.62% की गई है। पिछले साल जून में यह 0.90% थी जो अब करीब 6 गुना बढ़ चुकी है।

रिटेल महंगाई 5 महीने के उच्च स्तर पर : जून में रिटेल (खुदरा) महंगाई बढ़कर 5% हो गई। इससे पहले जनवरी में यह 5.07% थी। मई यह 4.87% रही थी। ईंधन और बिजली की महंगाई दर जून में 7.14% पहुंच गई जो मई में 5.8% थी। रिटेल महंगाई के आंकड़े 12 जून को जारी किए गए।

महंगाई का अर्थव्यवस्था पर असर : अर्थव्यवस्था पर महंगाई का असर दो तरह से होता है। महंगाई दर बढ़ने से बाजार में वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं और लोगों की खरीदने की क्षमता कम हो जाती है। महंगाई दर घटती है तो खरीदने की क्षमता बढ़ जाती है, जिससे बाजार में नगदी की आवक भी बढ़ जाती है। महंगाई बढ़ने और घटने का असर सरकारी नीतियों पर भी पड़ता है। रिजर्व बैंक ब्याज दरों की समीक्षा में रिटेल महंगाई दर को ध्यान में रखता है।

महंगाई पर चिंता जताते हुए आरबीआई ने 6 जून की समीक्षा बैठक में रेपो रेट 0.25% बढ़ाने का फैसला लिया। इस बैठक में आरबीआई ने अप्रैल-सितंबर के लिए रिटेल महंगाई अनुमान 4.8-4.9% कर दिया। इससे पहले अप्रैल की बैठक में के बाद ये 4.7-5.1% था।

चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही के लिए आरबीआई ने अनुमान 4.4% से बढ़ाकर 4.7% कर दिया। अगली बैठक 30 जुलाई को शुरू होगी जो 1 अगस्त तक चलेगी। ब्याज दरें तय करते वक्त आरबीआई कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (सीपीआई) आधारित रिटेल महंगाई दर को ध्यान में रखता है।

दो सूचकांकों के आधार पर तय होती है महंगाई : पहला- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) है, जो रिटेल महंगाई का इंडेक्स है। रिटेल (खुदरा) महंगाई वह दर है, जो जनता को सीधे तौर पर प्रभावित करती है। यह खुदरा कीमतों के आधार पर तय की जाती है। भारत में खुदरा महंगाई दर में खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी करीब 45% है। दुनिया भर में ज्यादातर देशों में खुदरा महंगाई के आधार पर ही मौद्रिक नीतियां बनाई जाती हैं।

दूसरा– थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई), जो थोक महंगाई का इंडेक्स है। डब्ल्यूपीआई में शामिल वस्तुएं अलग-अलग वर्गों में बांटी जाती हैं। थोक बाजार में इन वस्तुओं के समूह की कीमतों में बढ़ोतरी का आकलन थोक मूल्य सूचकांक के जरिए किया जाता है। इसकी गणना प्राथमिक वस्तुओं, ईंधन और अन्य उत्पादों की महंगाई में बदलाव के आधार पर की जाती है।