–बृजेश विजयवर्गीय,स्वतंत्र पत्रकार कोटा
राजस्थान प्रदेश में नगर निगम चुनावों में मिला जुला परिणाम बता रहा है कि सत्ता पक्ष कांग्रेस की चालाकियां और विपक्ष में विराजमान भाजपा को लगने वाला धक्के के क्या मायने है? समस्त चालाकियों के बावजूद जादूगरी काम नहीं आई। रसातल में जाने के बाद भी भाजपा में उठ कर खड़े होने का जज्बा अभी मरा नहीं है। अक्सर होता है कि जिसकी सत्ता होती है निकाय चुनाव हों या पंचायत चुनाव सभी में उसको लाभ मिलता है लेकिन हाल ही में संपन्न चुनावों के परिणाम बताते हैं कि कांग्रेस का यह दावा काफी पीछे छूट गया कि सभी छह निगमों में कबिज हम हीं होंगे।
फिर भी कांग्रेस के लिए संतोष की बात है कि उसे जो सफलता मिली वो उसकी अपेक्षा से ज्यादा है। एक बड़े समाचार पत्र के शीर्षक से समझा जा सकता है जो उसने कहा कि “बांटो और राज करो।“ यह प्रयोग कांग्रेस ने पूर्व में भोपाल नगर निगम में किया था उससे सीख लेकर ही जयपुर और कोटा तथा जोधपुर को अपनी सुविधा के अनुसार बांटा गया।बात हम कोटा से शुरू करें तो पाते हैं कि भाजपा दमदारी से चुनाव लड़ ही नहीं रही थी इसी का परिणाम है कि कोटा उत्तर में कांग्रेस को वाकओवर मिला और दक्षिण में भी उसकी साख बनी है। रणनीतिक चूक का नुकसान भाजपा को उठाना पड़ रहा है।
शुरू से ही जब वार्डों के सीमांकन का खेल शुरू हुआ उसी में कांग्रेस न अपने लिए सुरक्षित सीटें चुन लीं थी। एक तरीके से जनादेश का फैब्रीकेशन था,इसे ही जादूगरी कहा गया है।। भाजपा मुख्य विपक्षी दल होने के बावजूद इस चाल को समझ नहीं पाई और सक्षम आवाज उठा कर धु्रवीकरण नहीं कर पाई। कोविड महामारी के काल में जब राज्य सरकार हर मोर्चे पर विफल हो रही थी तब भी विपक्ष के रूप में भाजपा अपनी आवाज जन भावनाओं के अनुरूप बुलंद करने में नाकाम रही। हम कोटा उत्तर में सीमांकन को समझे ंतो लग रहा था कि यहां अब भाजपा के लिए आसान नहीं होगा।
यानी खेल का मैदान ही अनुरूप नहीं था जीत तो कहां से पाते। जिस जादूगरी के बल पर स्वायत्त शासन मंत्री स्थानीय नेता शांति धारीवाल आत्मविश्वास में सरोबार थे उनके मुकाबले में बाहर से आए प्रभारीनेता राजेंद्र राठोड,अर्जुन मीणा,किरण माहेश्वरी फीके पड़ गए थे, जबकि भाजपा के इतिहास रहा है कि भाजपा के नेता विपक्ष में होते हुए भी कांग्रेस को नाकों चने चबवा देते थे। चाहे स्वर्गीय भैरोंसिंह शेखावत हों या, ललित किशोर चतुर्वेदी या फिर रघुवीर सिंह कौशल ,दाऊ दयाल जोशी, हरीश शर्मा आदि आदि इन चुनावों में इन नेताओं की कमी जबरदस्त खली। लेकिन तब भाजपा में व्यक्तिवाद इतना हावी नहीं था जितना आज है।
आज तो लगा कि पार्टी नहीं व्यक्ति लड़ रहे है।ऐसा पूर्व में कांग्रेस में होता था अब भाजपा में हो रहा है। हां हाड़ौती में आज भी पुरानी परम्परा के फायरब्रांड नेता पूर्व मंत्री मदन दिलावर का करिश्मा है। लेकिन उन्हें जयपुर का प्रभारी बना कर उन्हें सीमा रेखा में बांध दिया। स्थानीय नेता दिलावर वर्तमान में रामगंजमण्डी से विधायक है उन्हें सीमित क्षैत्र में बांधना पार्टी की भूल रही। स्थानीय नेता दूसरे जो फायरब्रांड है प्रहलाद गुंजल भी अपना वर्चस्व नहीं दिखा पाए उनकी गूंज भी ठण्डी पड़ गई। कारण चाहे जो हो कोटा उत्तर में वह सिमट से गए। रोड़ शो तक नहीं कर सके।
लाडपुरा में पूर्व विधायक भवानी सिंह राजावत भी अपना वजूद नहीं बता सके। जबकि उन्हें इस क्षैत्र पर बड़ा नाज है। खैर कोटा दक्षिण में विधायक संदीप शर्मा की मौजूदगी ही न के बराबर रही। प्रभारी पूर्व मंत्री राजेंद्र राठौड़ की राठौड़ी कहीं नहीं दिखी।जो जलवा वह विधान सभा में दिखाते रहे है उसके फील्ड में कहीं दर्शन नहीं हुए। जब व्यक्तिवाद हावी रहाता है तो पार्टी संगठन गौण रहता है। दरअसल बाहरी नेताओं को प्रभारी बनाना ही गलत है । एक तो वे किसी से जुड़े नहीं होते दूसरा उनको क्षैत्र के मुद्दों की जानकारी नहीं होती। इस क्षैत्र में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का प्रभाव है लेकिन चुनाव वार्ड स्तर के थे उनके भी वही उम्मीदवार जीते जिनका अपना वजूद था।
यहां भी बड़े नेता चुनाव अभियान से दूर रहे जबकि दक्षिण में भी धारीवाल चुनौती दे रहे थे। भाजपा के सूत्र बताते हैं कि रणनीतिक चूक से भाजपा ने कोटा में अपनी जमीन खोई है। सवाल है कि क्या बड़े नेता दक्षिण में रोड़ शो नहीं कर सकते थे?बिरला जी को छोड़ दे ंतो पूर्व मंत्री मदन दिलावर, महापौर रहीं सुमन श्रंगी, मोहन लाल महावर,महेश विजय स्थानीय नेता थे। जिनका अपना प्रभाव रहा है, इस्तेमाल ही नहीं हुए।जो जीते खुद के दम पर भाजपा संगठन तो नदारद ही रहा। कोटा में तो भाजपा आक्रमक हो कर लड़ी ही नहीं।
अब यहां एक पैंच है विकासवादी राजनीति का कि कांग्रेस शासन में विकास के काम बहुत हो रहे है। विकास देख कर लोग वोट देते तो दक्षिण में बोर्ड बन ही जाना चाहिए था। भाजपा विकास की धूल में सनी रही ,उसे सही परिप्रेक्ष्य में रख ही नहीं पाई। कोटा में केईडीएल कंपनी की लूट बड़ा मुद्दा बन सकती थी पर भाजपा इसे सही तरीके से उठा ही नहीं सकी। फिर भी कांग्रेस विकास कार्यों को मुद्दा बनाने में काफी सफल रही। कोटा में दो बड़े नेतओं के बीच अंदरूनी तालमेल की बातें जन चर्चा में रहती है लेकिन इससे पीड़ित लोग इसके प्रमाण नहीं दे पाए। यह सही हे कि राज्य में कांग्रेस और भाजपा में बड़ा नेक्सस बन गया है। इसके ऐसे ही परिणाम आते है।