कोटा। कोविड 19 (Covid -19) यानी कोरोना के संक्रमण से बचाव के लिए सरकार ने जब से सोशियल डिस्टेंस और मास्क की अनिवार्यता की है। तब से बुद्धिजीवियों ने इसके अलग-अलग मायने निकाले हैं। लॉकडाउन तक तो यह ठीक था कि सोशियल डिस्टेंस का हमने पालन किया। अब अनलॉक है, लेकिन सावधानी तो अब भी जरूरी है। क्योंकि अब ही असल में कोरोना का सबसे ज्यादा खतरा है।
हमारा कहने का मतलब यही है कि आप सोशियल डिस्टेंस की जगह फिजिकल डिस्टेंस ही रखें। यानी मास्क लगाने के बाद भी किसी से मिलते समय कम से कम तीन फ़ीट की दूरी अवश्य रखें। इसका यह मतलब कतई नहीं कि जरूरत पड़ने पर भी किसी से नहीं मिलें।
भारतीय संस्कृति के अनुरूप सोशियल डिस्टेंस शब्द मन की दूरियों की तरफ इंगित करता है, जबकि कोविड 19 संक्रमण से बचाव के लिए तन की दूरी बनाए रखना आवश्यक है। शुरू में तीन फुट एवं वर्तमान में छ फुट दूरी बनाए रखने के दिशा-निर्देशों की अनुपालना परम आवश्यक है।संकट कालीन परिस्थिति में ही नहीं वरन् सामान्य जीवन काल में भी सभी को एक दूसरे के प्रति मन से जुड़ाव रखते हुए संवेदनशील रहना ही अपनी संस्कृति की पहचान है।
वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय के तत्कालीन होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति सर्टिफिकेट कोर्स डेवलपमेंट समिति के सदस्य, कोर्स लेखक एवं पुस्तक संम्पादक डॉ लोकमणि गुप्ता ने बताया कि वे इस सोशियल डिस्टेंस शब्द को फिजिकल डिस्टेंस शब्द के रूप में स्थापित कराने के लिए निरंतर प्रयासरत थे। उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने लिटरेचर में फिजिकल डिस्टेंस लिखना शुरू कर दिया है। ।
मास्क का उपयोग कब और कहां
मास्क के उपयोग को लेकर जनसामान्य में अनेकानेक भ्रान्तियां हो गई हैं। ऐसा लगने लगा है कि कुछ बंन्धुओं ने तो नाक एवं मूंह को लेमिनेटेड ही कराने का सोच लिया है।हम किन्हीं को समझाने की कोशिश करते हैं तो बुरा मान जाते हैं। हमें मास्क का समुचित उपयोग कर,ड्रोपलेट एयर बोर्न इन्फेक्शन के फैलाव एवं संक्रमण को रोकना है।