–कमल सिंह यदुवंशी
कोटा। देश के कोचिंग संस्थानों में फीस वसूली क्यों न स्कूलों की तरह मासिक आधार पर लागू की जाए। विद्यार्थी जितने महीने पढ़ाई करेंगे, उतनी ही फीस जमा करेंगे। अब तक कोचिंग संस्थान पूरे एक वर्ष की फीस एडवांस में ले लेते है, जबकि बच्चों को क्लासरूम कोचिंग 7 से 9 महीने ही दी जाती है। यह संस्थानों के आंकड़े बताते हैं। बाकी तीन महीने की फीस वे अभिभावकों से मुफ्त में वसूल कर रहे हैं।
कोचिंग के शिक्षको को भी स्कूल या कालेज से 100 गुना ज्यादा सेलेरी किस आधार पर दी जाती है, वे करोड़ों के कारोबारी बन बैठे हैं। इसलिए कोटा में प्रत्येक चौथा कोचिंग फेकल्टी हॉस्टल का मालिक भी है। प्रत्येक संस्थान में जेईई एडवांस्ड अथवा नीट का रिजल्ट या फेकल्टी की प्रत्येक क्लास का रिजल्ट देखें तो 5% बच्चे भी इन एंट्रेंस एग्जाम में सलेक्ट नही हो रहे है, फिर इतनी मोटी फीस लेने का औचित्य और आधार क्या है,?
मोदी सरकार गरीब अभिभावकों की इस पीड़ा को समझते हुए देश मे एक शिक्षा-एक नियम के तहत राष्ट्रीय स्तर पर एक शिक्षा नियामक आयोग का गठन करे, जो शिक्षा के नाम पर चल रही ऐसी व्यावसायिक लूट और कारोबार पर नियंत्रण लागू कर सके।
- जब राज्य सरकारें निजी स्कूलों की तीन माह की फीस पर लगाम कस सकती है, तो फिर कोचिंग संस्थानों को यह छूट कैसे मिली हुई है।
- क्या कोचिंग संस्थान राजनीतिक पार्टियों को भी करोड़ो रूपये का सहयोग कर बोलती बन्द करने में सफल हो रहे हैं।
- छात्रों तथा अभिभावकों के हित में मीडिया आवाज उठाने में डरता है,उसे करोड़ो रुपयों के विज्ञापनों का नुकसान उठाने की धमकी दी जाती है।
- देश के विद्यार्थी एकजुट होकर सोशल मीडिया के मार्फ़त सरकार से कोचिंग संस्थानों की फीस पर कंट्रोल लगाने की मांग करे।