कोटा। महावीर नगर विस्तार योजना स्थित दिगंबर जैन मंदिर परिसर में चल रहे आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी संघ के पावन वर्षायोग के अवसर पर गुरूवार को माताजी ने प्रवचन करते हुए अहिंसा के सिद्धांत के बारे में विस्तार से बताया। आर्यिका सौम्यनन्दिनी माताजी ने कहा कि मन-वचन-कर्म से किसी जीव को दुखी करना या उसके प्राणों का हरण कर लेना हिंसा है। यदि मन में लगातार हिंसा के विचार आ रहे हैं, तो व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है। अहिंसा का भाव मन को शांत रखता है।
उन्होंने कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने दुखों का मूल कारण परिग्रह को बताया है। आसक्ति को परिग्रह कहा गया है। आवश्यकता से ज्यादा अचेतन पदार्थों का संग्रह मनुष्य को तनाव में डाल देता है। जो मनुष्य जितना कम परिग्रह रखता है, उतना ही तनावमुक्त रहता है। यदि किसी व्यक्ति को किसी पदार्थ के प्रति अधिक आसक्ति है, तो उस पदार्थ का वियोग होने पर वह दुखी होता है।
जैन दर्शन के अनुसार, समय आने पर सभी जीव अपने कर्मों का फल अनुकूल या प्रतिकूल रूप में भोगते हैं। व्यक्ति अपने कर्मों के लिए स्वयं उत्तरदायी होता है। सुख और दुख स्वयं के कर्मों का फल है। दूसरे लोग मुझे सुख या दुख देते हैं-ऐसे विचार तत्वज्ञान से शून्य व्यक्ति ही करते हैं। इससे जीवन में दूसरों को दोष देने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगता है। उन्हें यह बात समझ में आ जाती है कि दूसरे लोग निमित्त मात्र हैं। ऐसा चिंतन करने से मनुष्य व्यर्थ ही तनावग्रस्त नहीं होता है।