छोटी बहन को कैंसर, बोनमैरो डोनेट किया, नीट क्रेक कर अब रितुरिमा बनेगी डॉक्टर

0
1364

कोटा। संघर्ष करते हुए कैसे जीता जा सकता है, इसका उदाहरण है एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट की स्टूडेंट रितुरिमा बैद्य। उसकी छोटी बहिन मधुरिमा को मात्र 15 साल की उम्र में कैसर हो गया। तब रितुरिमा 10वीं कक्षा में थी। रितुरिमा ने पारिवारिक तनाव के बीच खुद की पढ़ाई जारी रखी।

नीट की तैयारी करने के लिए त्रिपुरा के उदयपुर गांव से कोटा आकर एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट में एडमिशन लिया। अब कक्षा 12 के साथ नीट क्रेक किया, रितुरिमा ने ऑल इंडिया 1274 एवं ओबीसी कैटिगिरी में 319वीं रैंक प्राप्त की है। पिता खोकन चंद्र बैद्य एक छोटी सी दुकान संचालित करते हैं और मां रत्ना दत्ता गृहिणी है।

रितुरिमा ने बताया कि मेरा शुरू से डॉक्टर बनने का सपना था। एमबीबीएस करने के बाद स्पेशलाइजेशन कैंसर में ही करके ऑकोंलॉजिस्ट बनना चाहती हूं ताकि कैंसर से पीड़ित मरीजों की मदद कर सकूं। साथ ही आईएएस बनने की चाह है। बहिन की बीमारी के दौरान मुझे समाज से काफी सहयोग मिला। मैं उसे लौटना चाहती हूं।

नॉन हाडकिंग्स लिम्फोमा कैंसर
रितुरिमा ने बताया कि मधुरिमा कक्षा 9 और मैं 10वीं में थी। एक दिन मधुरिमा को कमजोरी महसूस होने लगी। एक-दो दिन बाद ही चेहरे पर काफी सूजन आ गई थी। जांच में कैंसर निकला। उसे नॉन हॉडकिंग्स लिम्फोमा, पीएमबीसीएल (प्राइमरी मेडिस्टेनियल लार्ज बी सेल लिम्फोमा) कैंसर था।

यह एक ऐसा कैंसर है जो प्रतिरक्षा प्रणाली में मौजूद संक्रमण से लड़ने वाली कोशिकाओं में शुरू होता है। त्रिपुरा में चिकित्सकों ने मधुरिमा को बेहतर इलाज के लिए मुम्बई लेकर जाने की सलाह दी। अगले ही दिन मम्मी और मामा उसे लेकर रवाना हो गए। घर पर मैं और पापा ही थे। कैंसर हृदय और फेफड़ों के बीच में था।

ऑपरेशन करना संभव नहीं था। दवाइयों एवं कैमोथैरेपी से उपचार शुरू हुआ। करीब आठ महीने तक उसका उपचार चलने के बाद वे घर लौटे। बीमारी में थोड़ा सुधार दिखा। एक महीने बाद चैकअप के लिए मुम्बई ले गए तो पता चला कि कैंसर और फेल गया और अब फेफड़ों को भी जकड़ लिया है।

सकारात्मक माहौल से मिली शक्ति
रितुरिमा ने बताया कि पढ़ाई के दौरान कोटा में कई मोटिवेशनल सेशन्स अटैंंड किए, जिससे मैंने स्वयं को मजबूत महसूस किया। यहां योगा सेशन में भी मैं खुद को शांत रखना सीखती थी। इसके अलावा एलन फैकल्टीज मुझे हमेशा मोटिवेट करते रहते थे। इसी कारण मैं संघर्ष के दौरान खुद को मजबूत रख सकी।

बोनमैरो दिया, तीन सप्ताह मुम्बई में रही
10वीं में मैंने 10 सीजीपीए प्राप्त किए। नीट की तैयारी के लिए कोटा आ गई और एलन में एडमिशन लिया। लेकिन, बहिन की बीमारी की वजह से परेशान भी रहती थी। कोटा आने के करीब दो माह बाद पता चला कि उसका कैंसर फैल चुका है और उसे बोनमैरो ट्रांसप्लांट की जरूरत होगी।

बोनमैरो शरीर में ब्लड सेल्स बनाने का काम करता है। मम्मी-पापा का बोनमैरो उससे मैच नहीं हुआ। फिर मेरा बोनमैरो मैच हुआ और मुझे ट्रांसप्लांट के लिए मुम्बई जाना पड़ा। करीब तीन सप्ताह वहां रही। जांचों के लिए ट्रांसप्लांट के पहले और बाद में कई बार मुम्बई जाना पड़ा।

20 लाख खर्च हुए, एलन ने की मदद
बोनमैरो ट्रांसप्लांट में 20 लाख तक का खर्च था। ऐसे में परिवार ने कई संस्थानों से मदद ली। एलन ने भी मेरी मदद की और फेकल्टीज ने 4 लाख रूपए एकत्रित कर परिवार को सौंपे। कोचिंग व हॉस्टल फीस में रियायत दी गई।

मुम्बई-कोटा के चक्कर में नियमित क्लास नहीं जा पाती थी लेकिन, एलन फैकल्टीज ने मेरी मदद की। जिन क्लासों को मैं अटैण्ड नहीं कर पाती, उन्हें फैकल्टीज की मदद से बाद में पूरा किया। महत्वपूर्ण टॉपिक्स को क्लीयर किया ताकि नींव मजबूत हो सके।