प्रतिभा देख मामा ने पढ़ाया, जुर गांव का शेरा अब चढ़ेगा IIT की सीढ़ियां

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कोटा। कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है, समझौते करने पड़ते हैं, लगातार लक्ष्य के प्रति संकल्पित रहकर मेहनत करनी पड़ती है तब जाकर सफलता हासिल होती है। ऐसी ही कामयाबी का उदाहरण है एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट का छात्र शेराराम।

जोधपुर जिले के औसियां तहसील के जुर गांव में सुविधाएं नहीं होने पर पढ़ाई के लिए दूसरे गांव जाने वाले शेराराम ने जेईई-एडवांस्ड के नतीजों में ओवरआल 4521 तथा कैटेगिरी रैंक 710 प्राप्त की है। अब आईआईटी कानपुर से मैकेनिकल की पढ़ाई करने की इच्छा रखने वाला शेराराम गांव की स्थितियों में बदलाव लाना चाहता है, यहां के युवाओं को आगे बढ़ाने के लिए मदद करना चाहता है।

शेराराम का मानना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाओं के अभाव में कई बार प्रतिभाओं को उनकी योग्यता के अनुरूप मुकाम नहीं मिल पाता लेकिन कोटा जैसे शहरों में स्टूडेंट्स को जब सपोर्ट मिलता है तो इससे प्रतिभाएं आगे आती हैं और इससे गांव के स्टूडेंट्स में भी जागरूकता आ रही है।

गांव में भर जाता है पानी
शेराराम का परिवार जुर गांव में ही रहता है गांव में जमीन के नीचे जिप्सम होने के कारण पानी के लॉक होने की समस्या बहुत है। बरसात होने के बाद कई दिनों तक गांव तालाब बन जाता है और सारी व्यवस्थाएं ठप हो जाती है। बचपन में कई बार ऐसा हुआ तो शेराराम की पढ़ाई बाधित हुई। सरकारी स्कूल में कक्षा छह तक पढ़ा।

कुछ वर्षों पहले तक तो बिजली भी पूरे समय नहीं आती थी। कभी-कभी दिन-दिनभर बिजली गुल रहती थी। यह बात शेरा के मामा के सामने आई। शेरा की पढ़ने में रूचि देख वे उसे अपने साथ ले गए और जोधपुर के ही लोरता बालेसर गांव में रहकर पढ़ाई करवाई। ननिहाल में रहकर पढ़ाई करने पर शेराराम ने दसवीं कक्षा में 86 प्रतिशत अंक प्राप्त किए तथा 12वीं में 84 प्रतिशत अंक प्राप्त किए।

इसके बाद शिक्षकों ने आगे पढ़ने के लिए कोटा भेजने की बात कही। इस पर भी मामा तैयार हो गए और कोटा में एलन में एडमिशन करवाया। यहां शेराराम की प्रतिभा और पारिवारिक परिस्थितियों को देखते हुए शुल्क में 50 प्रतिशत की रियायत दी गई।

नरेगा मजदूर हैं माता-पिता
शेराराम का परिवार आर्थिकरूप से सक्षम नहीं है। पिता धन्नाराम दसवीं तक पढ़े हुए हैं व नरेगा में मेट का काम करते हैं तथा मां कैथू देवी निरक्षर व नरेगा में मजदूर हैं। कहने को परिवार में 16 बीघा जमीन है परिवार खेती पर निर्भर है लेकिन जमीनों में परिवार की हिस्सेदारी होने के कारण बहुत कम हिस्सा मिला और इससे परिवार का गुजर-बसर जितना ही हो पाता है।

बचपन से सरकारी स्कूल में ही पढ़ा। गांव में आठवीं तक ही स्कूल हैं, अभी भी छोटे भाई व बहिन जुर में ही पढ़ रहे हैं। पारिवारिक स्थिति को देखते हुए ही मामा मोहनराम जो कि कॉन्ट्रेक्टर हैं, उन्होंने शेराराम को पढ़ाया। अब शेराराम अपने दोनों भाई बहनों को भी अच्छा पढ़ाने की इच्छा रखता है। कोटा में रहकर शेराराम ने मन लगाकर पढ़ाई की और एक ही वर्ष में अपनी प्रतिभा को साबित करते हुए परिवार की अपेक्षाएं पूरी की।