कोटा। वर्तमान चैबीसी के 1452 गणधर स्वामी की दिव्यार्चना, समवशरण में प्रविष्ठ होते चक्रवर्ती, शोभायात्रा में गूंजते आर्यिका संघ के जयकारे, बग्घियों में सवार इन्द्र इन्द्राणि, स्वागत कर्म में लिप्त लोगों की अनन्त निर्जरा, जैन महिलाओं द्वारा अकल्पनीय परेड की भव्य प्रस्तुति, महाव्रत स्वर्ण संयम ध्वज को मार्च पास्ट के साथ सलामी देती नारी शक्ति, मधुर स्वर लहरियां बिखेरते बैण्ड, नाचते गाते लोग, विशुद्ध मातृगान की शानदार प्रस्तुति और अहिंसा के जयकारों से गुंजायमान होता पाण्डाल।
दशहरा मैदान में गुरूवार से शुरू हुए त्रिदिवसीय राष्ट्रीय स्वर्णिम संयम दीक्षा महोत्सव में महाव्रतों का शंखनाद कुछ इसी तरह से किया गया। इस दौरान अहिंसा का जयघोष हुआ और संयम की सौगात भी मिली। सिद्धान्त रत्न गणिनी आर्यिका विशुद्धमति माताजी का त्रिदिवसीय राष्ट्रीय स्वर्णिम संयम दीक्षा महोत्सव गुरूवार से मेला ग्राउण्ड दशहरा मैदान पर प्रारंभ हुआ। इस दौरान सुप्रभात वंदना, जिनाभिषेक, शांतिधारा के कार्यक्रम किए गए।
इसके बाद निकली भव्य शोभायात्रा में कर्तव्य और अनुकम्पा की अद्भुद छटा के दर्शन हुए। शोभायात्रा जैन मंदिर तलवंडी से प्रारंभ होकर झालावाड़ रोड, विज्ञान नगर, एयरोड्रम सर्किल, घोड़े वाले बाबा चैराहा, सीएडी सर्किल होते हुए कार्यक्रम स्थल दशहरा मैदान पर पहुंची।
जुलूस में 4 महिला बैण्ड समेत विभिन्न राज्यों की संस्कृति के रंग बिखेरते हुए 14 विशेष बैण्ड चल रहे थे। इसके साथ ही 31 बग्घियांे में इन्द्र इन्द्राणी और कुबेर सवार थे। वहीं, 5 हाथी, 11 पंचरेंगे ध्वज लिए घुड़सवार और सजी धजी झांकियां शोभायात्रा को आकर्षक बना रही थीं। पूरे शोभायात्रा मार्ग पर रंगोलियां सजाई गई थीं।
सांसद ओम बिरला भी जुलूस के दौरान पूरे समय मौजूद रहे। हेलिकाॅप्टर से पुष्पचवर्षा की जा रही थी। कोटा में प्रवास कर रहीं गणिनी आर्यिका विभाश्री माताजी, गणिनी आर्यिका विशुद्धमति माताजी के संघ समेत करीबन 20 साधु भी शोभायात्रा में त्याग और वैराग्य की छटा बिखेर रहे थे। दीक्षा लेने वाली ब्रह्मचारिणी भाग्यवती दीदी तथा बाल ब्रह्मचारिणी उषा दीदी भी बग्घियों में सवार होकर वितराग की ओर बढ रही थीं।
जीवन को जयवंत बनाने की यात्रा का वर्णन करती हुई माताजी के जीवन चरित्र की झांकियां प्रेरणास्पद थी। अजमेर से मंगाए गए स्वर्ण जड़ित रथ में श्रीजी विराजमान होकर चल रहे थे। वहीं भक्तों के द्वारा उनके चंवर ढुलाए जा रहे थे। जिनके पीछे भक्तजनों के द्वारा जयकारों से आसमान गुंजायमान किया जा रहा था। बैण्ड की धुन पर नाचते गाते महिला पुरूष चल रहे थे।
बैण्ड के द्वारा ‘‘तुझसे लागी लगन, ले लो अपनी शरण…पूजते रहते तुझे सांझ सवेरे, नैनों में प्यास जागी दर्शन को तेरे…गुरू मां आई हमारे द्वार, बधाई हो बधाई…जैसे गीतों से धर्म की प्रभावना की। कच्छी घोड़ी नृत्य करते हुए कलाकार लोकसंस्कृति के रंग बिखेर रहे थे। शोभायात्रा में 178 जैन महिलाओं की परेड ने नारीशक्ति के अदम्य साहस के दर्शन कराए।
इसमें महिलाएं पंचरंगे जैन ध्वज की भांति पांच अलग अलग प्रकार के लाल, गुलाबी, पीली, नीली, सफेद, हरे रंगों की साड़ियां पहनकर कदमताल करती हुई चल रही थीं। महिला बैण्ड के द्वारा आणक, प्रणव, झांझ, मंजीरे और सारिका के द्वारा घोष की मधुर रचनाओं का रसास्वादन कराया जा रहा था। प्रत्येक बटालियन के लिए एक महिला को कमाण्डर बनाया गया था।
इसके अलावा चार कमाण्डर आर्यिका संघ को साथ लेकर चल रहे थे। कार्यक्रम स्थल दशहरा मैदान पहुंचने पर महिलाओं के द्वारा जैन ध्वज को सलामी दी गई तथा तोप से पुष्पवर्षा हुई। अरिहंत स्कूल आरकेपुरम् के 250 बच्चों के द्वारा विशुद्ध मातृगान प्रस्तुत किया गया।
स्वर्ण संयम ध्वजारोहण के बाद 1452 गणधर स्वामी वृहद् जिनार्चना, सकलीकरण, आचार्य निमंत्रण, इन्द्र प्रतिष्ठा, कलश स्थापना, अखण्ड दीप प्रज्ज्वलन और शाम को आरती व प्रवचन के कार्यक्रम हुए। समारोह के मुख्य अतिथि नगरीय विकास मंत्री शांति कुमार धारीवाल द्वारा स्मारिका का विमोचन किया गया। समारोह की अध्यक्षता सांसद ओम बिरला ने की।
वहीं गौरव अध्यक्ष के रूप में संगम यूनिवर्सिटी भीलवाड़ा के चैयरमेन रामपाल सोनी मौजूद रहे। गणिनी आर्यिका विशुद्धमति माताजी के द्वारा लिखित 50 धर्मग्रंथों का विमोचन भी किया गया। संगम यूनिवर्सिटी की ओर से विशुद्धमति माताजी को डी. लिट् की उपाधि से अलंकृत किया गया। इस दौरान भारत सरकार के द्वारा विशुद्धमति माताजी पर जारी किए गए डाक टिकट का भी विमोचन किया गया।
श्रवणबेलगोला से आईं पिच्छिका भी माताजी को भेंट की गई। गणधर विलय विधान में भाग लेने वाले पुण्यार्जकों को रात्रि भोजन निषेध, व्यसन मुक्ति, बाहर का भोजन न करने और पानी छानकर पीने का संकल्प दिलाया गया।
युगल जैनेश्वरी श्रमणी दीक्षा महोत्सव के तहत ब्रह्मचारिणी भाग्यवती और बाल ब्रह्मचारिणी उषा दीदी ने अंजुलि में भोजन ग्रहण क्रिया की। दीक्षार्थियों के द्वारा गणधर वलय विधान का आयोजन किया गया। 50वें स्वर्ण संयम महोत्सव के अद्वितीय, अविस्मरणीय क्षणों को अमिट बनाने के लिए देशभर से जैन भक्तों का आना प्रारंभ हो गया है।