तेल कंपनियों के अधिग्रहण के बजाय विलय की तैयारी

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    नई दिल्ली। सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों के एकीकरण में अधिग्रहण के बजाय विलय का रास्ता अख्तियार किया जा सकता है। इस बारे में वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि विलय की स्थिति में खुली पेशकश की जरूरत से बचा जा सकता है। सबसे पहले तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन के विलय की योजना है।

    विलय से ओएनजीसी पर किसी तरह का दबाव भी नहीं आएगा। अधिग्रहण की सूरत में एचपीसीएल ओएनजीसी की अनुषंगी इकाई बन जाती। हालांकि एक अधिकारी ने कहा कि गेल लिमिटेड भी अधिग्रहण करने या ऑयल इंडिया जैसी किसी दूसरी तेल विपणन कंपनी के साथ विलय को तैयार है लेकिन पहले ओएनजीसी-एचपीसीएल के विलय का निर्णय हुआ है।

    इसके लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है लेकिन हाल में ही सरकार ने एकीकरण के विकल्प मुहैया कराने की जिम्मेदारी डेलॉयट को दी है। उसे जुलाई तक इस संबंध में रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा तय अधिग्रहण संहिता में अगर कोई सूचीबद्ध इकाई किसी अन्य इकाई में 25 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदती है या प्रबंधन अपने नियंत्रण में लेती है तो इसे खुली पेशकश लानी होगी।

    जिस कंपनी का अधिग्रहण हो रहा है उस कंपनी में सार्वजनिक शेयरधारिता 25 प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिए। सिंघी एडवाइजर्स के संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक महेश सिंघी ने कहा, ‘विलय का रास्ता आसान होगा क्योंकि इसमें खुली पेशकश की जरूरत नहीं होगी। दो कंपनी के निदेशक मंडलों को शेयर अदला-बदला की मंजूरी देनी होगी और शेयरधारकों की मंजूरी लेनी होगी।

    इसके अलावा भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की अनुमति की भी दरकार होगी।’ मौजूदा बाजार मूल्य पर और सरकारी शेयरधारिता का मूल्य बरकरार रहने की स्थिति में विलय के बाद अस्तित्व में आने वाली इकाई में सरकारी हिस्सेदारी 65 प्रतिशत हो जाएगी। सरकार बाद में उसी स्थिति में इस सौदे को भुना पाएगी जब यह नई इकाई में अपनी हिस्सेदारी बेचने का फैसला करेगी।