Chandrachud farewell: समाज को दिशा देने वाले चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की विदाई

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नई दिल्ली। Chandrachud farewell: भारत के प्रधान न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने शुक्रवार को अपने कार्यकाल के आखिरी दिन जैन कहावत मिच्छामी दुक्कड़म का उल्लेख करते हुए कहा, ‘यदि मैंने अदालत में कभी किसी का दिल दुखाया हो तो कृपया मुझे माफ कर दें।’ न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ दो साल तक इस पद पर रहे।

उनके पिता वाईवी चंद्रचूड़ भी 1978 से 1985 तक देश के मुख्य न्यायाधीश रहे। इस पद पर उनका सबसे लंबा कार्यकाल रहा। उच्चतम न्यायालय में सर्वोच्च पद पर पिता और पुत्र के आसीन रहने का यह एकमात्र उदाहरण है।

9 नवंबर, 2022 को मुख्य न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किए गए डीवाई चंद्रचूड़ आधिकारिक तौर पर 10 नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे, परंतु अदालत में शनिवार और रविवार का अवकाश रहेगा इसलिए आज ही उनका अंतिम कार्यदिवस था। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना देश के अगले प्रधान न्यायाधीश होंगे।

दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज एवं दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) के कैंपस लॉ सेंटर से पढ़ाई करने वाले तथा फिर हार्वर्ड लॉ स्कूल से एलएलएम और डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ द्वारा लिखे गए फैसलों की फेहरिस्त लंबी है।

उन्हें कई सारगर्भित बयानों के लिए भी जाना जाता है। हमेशा अपनी बात कहने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने 500 से अधिक फैसले लिखे, जिनमें से कुछ की आलोचना भी हुई और कई ने व्यापक प्रशंसा बटोरी।

वह पांच न्यायाधीशों के संविधान पीठ द्वारा सुनाए गए उस ऐतिहासिक फैसले का हिस्सा थे, जिसने ‘पैसिव यूथेंसिया’ के लिए, असाध्य रोगों से पीड़ित मरीज द्वारा तैयार किए गए ‘लिविंग विल’ को मान्यता दी। ‘लिविंग विल’ एक लिखित बयान होता है, जिसमें भविष्य में ऐसी परिस्थितियों में रोगी की चिकित्सा के संबंध में इच्छाओं का उल्लेख रहता है, जब वह सहमति व्यक्त करने में सक्षम न हो।

कई संविधान पीठों का हिस्सा रहे चंद्रचूड़
चंद्रचूड़ कई संविधान पीठों का हिस्सा रहे और उन्होंने अयोध्या भूमि विवाद सहित कई ऐतिहासिक फैसले लिखे। उन्होंने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में, 2019 में आया सर्वसम्मति वाला फैसला लिखा था। इस फैसले ने एक सदी से भी अधिक पुराने विवादास्पद मुद्दे को सुलझा दिया और भव्य राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया। वह उच्चतम न्यायालय के नौ न्यायाधीशों के उस पीठ का भी हिस्सा थे और सर्वसम्मति से दिए गए फैसले के प्रमुख लेखक थे, जिसने अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) के तहत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया।

भारतीय न्यायपालिका के 50वें मुखिया को विदाई देने के लिए अदालत नंबर 1 में मौजूद वकील, जज, अदालत के अधिकारी और याचियों की उपस्थिति में न्यायाधीश चंद्रचूड़ काफी भावुक नजर आए। विदाई समारोह में न्यायमूर्ति हृषीकेश रॉय ने कहा, ‘न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ उनके सहपाठी रहे हैं।’

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के समोसे के प्रति प्यार, अनुशासित जीवनशैली और उनकी शानदार शख्सियत का जिक्र किया। 13 मई, 2016 को शीर्ष अदालत में पदोन्नत हुए चंद्रचूड़ का जन्म 11 नवंबर, 1959 को हुआ था। वह 29 मार्च, 2000 से 31 अक्टूबर, 2013 तक बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे।

इसके बाद उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। उन्हें जून 1998 में बंबई उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया था और न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति होने तक उसी वर्ष अतिरिक्त महाधिवक्ता बने थे। उन्होंने उच्चतम न्यायालय और बंबई उच्च न्यायालय में वकालत की। वह मुंबई विश्वविद्यालय में तुलनात्मक संवैधानिक कानून के ‘विजिटिंग प्रोफेसर’ थे।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पिछले महीने भूटान में एक कार्यक्रम में कहा था कि वह अपने कार्यकाल का विश्लेषण कर रहे हैं कि ‘इतिहास उन्हें किस प्रकार देखेगा? क्या मैंने चीजों को कुछ अलग तरीके से किया है? जजों एवं कानूनी पेशेवरों की आने वाली पीढि़यों के लिए मैं कैसी विरासत छोड़ कर जा रहा हूं।’