गुरु दीक्षा के माध्यम से शिष्य को नैतिकता, चरित्र और आत्मनियंत्रण का मार्ग दिखाते हैं

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गुरूदेव आदित्य सागर का 13वां दीक्षांत जयंती एवं पिच्छी परिवर्तन कार्यक्रम

कोटा। मुनि आदित्यसागर मुनिराज ससंघ का दीक्षा जयंती एवं पिच्छी परिवर्तन कार्यक्रम शुक्रवार को कुन्हाड़ी में आयोजित किया गया। चातुर्मास स​मिति के अध्यक्ष टीकम पाटनी व मंत्री पारस बज आदित्य ने बताया कि समारोह में मुनि आदित्यसागर ने अपने गृहस्थ जीवन से मुनि जीवन तक के अनुभवों को साझा करते हुए एक मार्मिक आत्मकथा सुनाई, जिसने उपस्थित सभी को भावुक कर दिया।

उन्होंने अपने जीवन के संघर्षों और आध्यात्मिक यात्रा को बड़े ही सरल और प्रेरणादायक ढंग से प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में भजन, कीर्तन और प्रवचन के माध्यम से आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण हुआ।

मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा ने बताया कि श्रद्धालुओं ने मुनिराज का आशीर्वाद प्राप्त किया और इस पावन अवसर पर उनका उत्साहपूर्वक स्वागत किया। यह समारोह आध्यात्मिकता और जीवन के प्रति समर्पण का एक अनूठा उदाहरण बना।

इस अवसर गुरूदेव आदित्य सागर एवं अप्रमित सागर के प्रथम दीक्षा समारोह व गृहस्थ व मुनि जीवन के चलचित्रो को स्लाईड के माध्यम से प्रदर्शित किया गया। गुरूदेव आदित्य सागर ने बताया​ कि 7 गुरू भाईयों को आज ही के दिन दीक्षा दी गई थी। इस अवसर पर गुरूदेव आदित्य सागर जी की कई पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।

कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा व ताराचंद बड़ला ने बताया कि 13वें ​दीक्षांत समारोह में पादपक्षालन एवं चित्र अनावरण का सौभाग्य जयपुर के हाडा परिवार को प्राप्त हुआ। शास्त्र भेट का सौभाग्य सोहनलाल-बंसत कुमार लुहाडिया परिवार तथा दीप प्रज्जोलन का सौभाग्य मनोज-नेहा जैसवाल परिवार को प्राप्त हुआ।

इस अवसर पर सकल समाज के संरक्षक ​राजमल पाटौदी, अध्यक्ष विमल जैन नांता, कार्याध्यक्ष जे के जैन, मंत्री विनोद जैन टोरणी, ताराचंद बडला, निर्मल अजमेरा, मनोज बडला, अंकित जैन आर केपुरम, महेंद्र बगड़ा, जिनेन्द्र जज साहब, श्री चन्द्र प्रभ दिगंबर जैन मंदिर समिति के लोग उपस्थित रहे। मंच संचालन संजय सांवला व पारस लुहाड़िया ने किया।

पिच्छी परिवर्तन में श्रृद्धा का उल्लास
पिच्छी परिवर्तन मेें ​हजारों की संख्या में उपस्थित श्रावकों में मधुर भजनों पर अपना उत्साह व भक्ति का परिचय दिखाया। श्रावक नाचते- गाते पाण्डाल में प्रवेश किया किया और बारी-बारी चंदन, जल, अक्षत ,नेवैद्य, दीप- धूप, फल, जयमाला, अर्घ्य चढाया। सभागर में भव्य संगीत उद्घोष के साथ नई पिच्छी लाई गई। गुरूदेव आदित्य सागर मुनिराज, अप्रमित सागर और मुनि सहज सागर महाराज व क्षुल्लक श्रेय सागर महाराज की पिच्छी परिवर्तन करवाई। पुरानी पिच्छी प्राप्त करने का सौभाग्य राजू गोधा, सुशील बज, पुष्प कुमार लुहाडिया, हिम्मत नगर के श्रावक को प्राप्त हुआ।

गुरु की अपेक्षा और शिष्य का कर्तव्य
इस अवसर पर आदित्य सागर ने गुरु और शिष्य के बीच की गहन आध्यात्मिक और आचरणीय परंपरा पर प्रकाश डाला। उन्होंने गुरु के आदर्श, उनकी अपेक्षायें और शिष्य के प्रति उनके अनुदान को स्पष्ट किया। मुनिश्री ने कहा कि गुरु को किसी भौतिक वस्तु की आवश्यकता नहीं होती। उन्हें सिर्फ शिष्य से श्रद्धा और समर्पण चाहिए।

शिष्य का कर्तव्य है कि वह गुरु के आदर्शों को आत्मसात करे और उनके आचरण का अनुसरण करे। गुरु सबसे बड़ा अनुदान शिष्यों को समय और नाम देकर करते हैं। उन्होंने कहा, “गुरु का नाम देना बहुत बड़ी बात होती है।” दीक्षा और शिक्षा के माध्यम से गुरु शिष्य को नैतिकता, चरित्र, और आत्मनियंत्रण का मार्ग दिखाते हैं।

गुरु की शिक्षाओं को समझकर, आत्मसात करके और उन पर चलकर ही एक शिष्य अपने जीवन में सच्ची प्रगति कर सकता है। गुरु-शिष्य परंपरा का यह अद्वितीय संबंध जीवन जीने का सही मार्ग दिखाता है। शिष्य का धर्म है कि वह गुरु की शिक्षा को आत्मसात करे और अपनी चर्या से गुरु की गरिमा को बनाए रखे।

गुरु के प्रति समर्पण
अप्रमित सागर ने गुरु भक्ति, मुनि वंदना और समाज के प्रति अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि मोक्ष प्राप्ति का मार्ग गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा और समर्पण से खुलता है। उन्होंने कहा कि दिगंबर मुनि बनने के लिए बहुत दुर्लभ अवसर मिलते हैं और इसे साधना आसान नहीं है। अप्रमित सागर ने समाज के लोगों से आग्रह किया कि वे दिगंबर मुनियों की निंदा न करें। वे कहते हैं कि जिन शासन का अस्तित्व इन मुनियों के कारण ही है।