नई दिल्ली। भारत में बुलेट ट्रेन का सपना सच होने जा रहा है। 2022 तक इस सपने को हकीकत में बदलने का लक्ष्य रखा गया है, जिस पर तेजी और नई तकनीक से काम हो रहा है।
समुद्र के नीचे बुलेट ट्रेन की सुरंग बनाने के लिए भारत में पहली बार इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में ‘हाइड्रोफोन तकनीक’ का इस्तेमाल किया जा रहा है। परियोजना में एक 21 किमी लंबी सुरंग बनाई जाएगी जिसका 7 किमी हिस्सा समुद्र के अंदर होगा।
मुंबई में ठाणे क्रीक में समुद्र के भीतर बुलेट ट्रेन की सुरंग बनाने के लिए मिट्टी और चट्टानों का परीक्षण हाइड्रोफोन तकनीक से शुरू हो गया है। जापानी कंपनी कावासाकी साउंड स्टेटिक रिफ्रैक्टरी टेस्ट कर रही है।
मुंबई से अहमदाबाद के बीच 508 किलोमीटर लंबे रेल कॉरीडोर में समुद्र के अंदर करीब 21 किलोमीटर की सुरंग बनाई जानी है। बताया जा रहा है कि 21 किमी लंबी सुरंग के लिए 66 जगह पर बोरिंग कर समुद्र तल पर विशेष उपकरण फिट किए गए हैं।
इनमें ध्वनि तरंग बजकर उनसे प्राप्त आंकड़ों से चट्टान की क्वालिटी का पता चलता है। इंफ्रास्ट्रक्चर में यह तकनीक देश में पहली बार इस्तेमाल की जा रही है।बुलेट ट्रेन का मार्ग ठाणे के बाद विरार की ओर जाने पर समुद्र के अंदर बनी सुरंग से गुजरेगा।
जापान के सहयोग से बन रही इस परियोजना की कुल अनुमानित लागत 1.10 लाख करोड़ रुपये है, जिसमें सिर्फ सुरंग बनाने की लागत 3500 करोड़ रुपये है। परियोजना का करीब 81 फीसदी बजट जापान की ओर से उपलब्ध कराए गए कर्ज की रकम से किया जा रहा है।बुलेट ट्रेन साबरमती से मुंबई तक पहुंचेगी और इसके लिए दोहरी लाइन होंगी।
इसका लगभग 156 किमी महाराष्ट्र और 351 किमी गुजरात में होगा। बुलेट ट्रेन का पहला स्टेशन साबरमती है, जिसके बाद यह अहमदाबाद, आणंद/ नादिया, वडोदरा, भरच, सूरत, बिलीमोरा, वापी, वोइसर, विरार और ठाणे स्टेशन होते हुए अंतिम स्टेशन मुंबई पहुंचेगी।
बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 40 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा। 20 हजार लोगों को बुलेट ट्रेन की वजह से निर्माण क्षेत्र में 4 हजार ऑपरेशन में और 20 हजार अप्रत्यक्ष रूप से लोगों को रोजगार मिलेगा। इसके अलावा पूरे रूट में शहरी औद्योगिक विकास को गति मिलेगी।