नई दिल्ली। रोगाणुरोधी प्रतिरोध की समस्या से निपटने में वैक्सीन (टीकों) की भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण है। इनकी मदद से संक्रमण की रोकथाम मुमकिन है और एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग में कमी लाई जा सकती है। साथ ही इन दवाओं को बेअसर करने वाले रोगाणुओं के उभरने व फैलने की गति को धीमा किया जा सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी नई रिपोर्ट में यह जानकारी देते हुए कहा है कि वैक्सीन में अधिक निवेश से रोगाणुरोधी प्रतिरोध यानी एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेन्स (एएमआर) के कारण होने वाली मौतों को टाला जा सकता है। इसलिए लोगों को सलाह दी गई है कि देश में उपलब्ध टीकों का बेहतर इस्तेमाल करें और मौजूदा सरकारें इस दिशा में सक्रिय कार्रवाई करें।
रिपोर्ट के अनुसार, वैक्सीन के बेहतर उपयोग से एंटीबायोटिक प्रतिरोधी संक्रमणों के उपचार पर बढ़ते खर्च को भी सीमित किया जा सकेगा। इनके उपयोग से एंटीबायोटिक दवाओं के बढ़ते इस्तेमाल में 22 फीसदी तक कमी की जा सकती है। यानी इनकी मदद से लोगों की जानें बचाने के साथ-साथ आर्थिक संसाधनों की भी बचत होगी। रिपोर्ट के अनुसार, 24 रोगाणुओं से निपटने में वैक्सीन मददगार है। कुछ वैक्सीन जो पहले ही उपलब्ध हैं, उनके उपयोग को बढ़ावा देने के साथ नई वैक्सीन के विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
टाली जा सकती हैं असमय मौतें
टीकों में निवेश और उनके उपयोग को बढ़ावा देने से सालाना एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग में 250 करोड़ खुराकों की कमी की जा सकेगी। न्यूमोकॉकस, न्यूमोनिया, हेमोफिलुस इन्फ्लुएंजा टाइप बी से बचाव के लिए पहले ही टीके उपलब्ध हैं। यह रोगजनक न्यूमोनिया, टाइफाइड, मेनिनजाइटिस जैसी कई बीमारियों के लिए जिम्मेदार हैं। अगर लोग समय पर टीक लगवाएं तो इनके जरिये असमय होने वाली 1,06,000 मौतों को टालने में मदद मिल सकती है, जबकि टीबी और क्लेबसिएला न्यूमोनिया के टीकों से 5,43,000 जिंदगियों को बचाया जा सकता है।
टीकों का इस्तेमाल
रिपोर्ट के अनुसार, बहुत से टीके पहले ही उपलब्ध हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल उतना नहीं हो रहा जितना होना चाहिए। इसे बढ़ाए जाने की जरूरत है। दुनियाभर में वैक्सीनेशन की रफ्तार कम है। वैक्सीन डोज की उपलब्धता भी एक समस्या है। खासतौर से विकासशील और गरीब देशों में कई भ्रांतियां और मिथक हैं जो लोगों को वैक्सीन से दूर रखे हुए हैं, जबकि वैक्सीन ही शरीर में वायरस को पहचान और उसके खिलाफ एंटीबॉडी बनाने में मदद करती है। कोविड महामारी के समय में भी टीके जीवन रक्षक साबित हुए।
दवाओं का बेजा इस्तेमाल बड़ी समस्या
रिपोर्ट के अनुसार, जीवन रक्षक दवाएं लाखों लोगों का जीवन बचाने में मदद करती हैं, लेकिन दुनियाभर में एंटीबायोटिक दवाओं का होता बेजा इस्तेमाल एक बड़ी समस्या बन चुका है। रोगाणुरोधी प्रतिरोध एक ऐसी चुनौती है, जिसमें समय के साथ रोग फैलाने वाले जीवाणुओं, विषाणुओं और फंगस के साथ परजीवियों में ऐसे बदलाव आने लगते हैं कि एंटीबायोटिक दवाएं उन पर बेअसर होने लगती हैं। रोगाणुरोधी प्रतिरोध सालाना 50 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार है। हालांकि, इसमें कोई शक नहीं कि एंटीबायोटिक्स से लेकर एंटीवायरल जैसी एंटीमाइक्रोबियल दवाओं ने लोगों की जाने बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक सदी पहले इनकी खोज के बाद से ही लोगों की औसत जीवन प्रत्याशा में इजाफा हुआ है।