Import: सरकार का दाल-दलहन एवं खाद्य तेलों का आयात घटाने पर विचार

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नई दिल्ली। केन्द्र सरकार एक तरफ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अनाजी फसलों- चावल, गेहूं एवं मोटे अनाजों का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे रही है तो दूसरी ओर विदेशों से दलहनों तथा खाद्य तेलों के विशाल आयात और इस पर होने वाले भारी-भरकम खर्च को नियंत्रित करने की कोशिश भी कर रही है।

देश में दलहन-तिलहन फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए नई नीतियां एवं योजनाएं लागू की जा रही हैं ताकि किसानों को इसकी बिजाई एवं पैदावार में वृद्धि करने का अच्छा अवसर और प्रोत्साहन मिल सके। रबी फसलों की खेती का सीजन शुरू हो गया है और सरकार चाहती है कि गेहूं, चना, मसूर, सरसों तथा जौ की खेती में अच्छी दिलचस्पी दिखाए।

इन तमाम फसलों का उत्पादन बढ़ाना आवश्यक है क्योंकि यह आंतरिक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा आयात पर निर्भरता घटाने के लिए आवश्यक है। भारत संसार में दलहनों तथा खाद्य तेलों का सबसे बड़ा आयातक देश बना हुआ है। सरकार का इरादा किसानों को आकर्षक एवं लाभप्रद मूल्य दिलाने का है ताकि उन्हें औने-पौने दाम पर अपना उत्पाद बेचने के लिए विवश न होना पड़े।

इसके लिए न केवल विभिन्न फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में नियमित रूप से अच्छी बढ़ोत्तरी की जा रही है बल्कि समर्थन मूल्य पर किसानों से खरीद बढ़ाने का प्रयास भी किया जा रहा है।

इस बार रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से खरीद बढ़ाने का प्रयास भी किया जा रहा है। इस बार रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में पुनः बढ़ोत्तरी होने वाली है। यह सही है कि फसलों की खेती पर लागत खर्च बढ़ता जा रहा है और इसलिए किसानों को एमएसपी में अच्छी बढ़ोत्तरी की दरकार रहती है।

ऊंचे बाजार भाव के कारण चालू रबी सीजन में गेहूं, चना एवं सरसों का बिजाई क्षेत्र कुछ बढ़ने की उम्मीद की जा रही है और यदि इसके समर्थन मूल्य में अच्छी वृद्धि की गई तो किसानों को क्षेत्रफल बढ़ाने का अतिरिक्त प्रोत्साहन मिलेगा।

खरीफ फसलों की कटाई-तैयारी जोर पकड़ने लगी है जिससे रबी फसलों की बिजाई के लिए रास्ता साफ हो रहा है। रबी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा जल्दी ही होने वाली है।