कोटा। चंद्र प्रभु दिगंबर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर ऋद्धि-सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आध्यात्मिक श्रावक साधना संस्कार शिविर में शुक्रवार को आदित्य सागर मुनिराज ने अपने प्रवचन में संयमित संतुलित जीवन, उत्तम संयम, धर्म मंगल प्रवचन की विवेचना की। उन्होंने कहा कि हम आप चातुर्मास में नियमित मंदिर आते हैं। प्रवचन में रुकते हैं, पूजा करते हैं और फिर भी आपके सभी कार्य समय पर हो रहे हैं। यही प्रबंधन कहलाता है।
उन्होंने कहा कि जीव को संतुलन व संयमित जीवन जीना चाहिए। इस संसार में मनुष्य योनी 84 लाख योनियों के बाद मिलती है। इसे इंद्रीय सुख में समाप्त नहीं करना चाहिए। मनुष्य योनी के लिए देवता भी तरसते हैं। इसलिए इसे सर्वश्रेष्ठ योनी कहा जाता है।
उन्होंने कहा कि जो श्री व स्त्री के चक्कर में पड़ा, वह उलझता ही चला जाता है। उन्होंने कहा कि संयमित जीवन का कोई विकल्प नहीं होता है। यदि मनुष्य आसक्ति को बढ़ाएगा तो संयम कम होता जाएगा। जो मन को संतुलित रख सकता है वही उच्च संयम है।
उन्होंने कहा कि संयम आपका विवेक है, ब्रेक है, लगाम है और रिमोट है। पर्युषण पर्व के तहत जो पूजन करने से वंचित है वह दर्शक मात्र है। कुछ मौसम व अन्य कारणों के कारण पर्वों का दर्शक ही बनकर रह जाते हैं। परंतु जो खिलाड़ी बनता है वह पर्युषण पर्व में पूजन कर अपना मौसम स्वयं ही बनाता है। जो व्रत धारण करते हैं वे संयमित बनते हैं।
उन्होंने कहा कि सीमित रहना ही संयम है। जब सीमित रहोगे तो असीमित संपत्ति के मालिक बनोगे। अपने पर बात हो तो सह जाओ और धर्म पर बात हो तो कह जाओ। उन्होंने कहा कि जब कोई आपको कुछ कहे तो उसे इग्नोर करें उस पर ध्यान न दें। परंतु जब बात धर्म या गुरु पर आए तो प्रतिकार करें और संयमित रहकर जवाब दें।
इस अवसर पर चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज, कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, ऋद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेंद्र गोधा, सचिव पंकज खटोड सहित सहित कई लोग उपस्थित रहे।