नई दिल्ली। दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा इस बार लम्बे समय तक जारी रहने की संभावना है जिससे खरीफ फसलों को गंभीर खतरा हो सकता है। समझा जाता है कि इस वर्ष मानसून की वापसी में देर हो जाएगी जिससे देश में सामान्य औसत से अधिक बारिश होगी और यह अधिशेष वर्षा धान, कपास, सोयाबीन, मक्का तथा दलहनों की फसल के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है।
आमतौर पर भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून 1 जून को आता है और 17 सितम्बर से प्रस्थान करने लगता है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि इस बार यह अपने नियत समय से ज्यादा अवधि तक सक्रिय रहेगा जिससे कटाई-तैयारी के दौरान विभिन्न फसलों को गंभीर क्षति हो सकती है।
मौसम विभाग के मुताबिक मध्य सितम्बर के आसपास कम दाब का क्षेत्र बनने की संभावना है जो मानसून को आगे भी सक्रिय रखेगा। ला नीना मौसम चक्र का प्रभाव भी मानसून की गतिशीलता बरकरार रख सकता है।
ध्यान देने की बात है कि खरीफ सीजन की अगैती बिजाई वाली फसलों की कटाई-तैयारी मध्य सितम्बर से आरंभ हो जाती है। इन पकी हुई फसलों के लिए मानसून की वर्षा खतरनाक साबित होगी।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार सामान्य औसत से अधिक वर्षा खरीफ सीजन की पिछैती बिजाई वे फसलों के लिए सहायक बनेगी और साथ ही साथ इससे आगामी रबी सीजन में गेहूं, चना, सरसों, मसूर एवं जौ सहित अन्य फसलों की बिजाई में भी सहायता मिलेगी।
मौसम विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सितम्बर के तीसरे सप्ताह में एक ‘लो प्रेशर सिस्टम’ के विकसित होने की संभावना है जिससे मानसून के प्रस्थान करने में देर हो जाएगी।
हालांकि इस वर्ष धान, दलहन, तिलहन एवं मोटे अनाजों के उत्पादन क्षेत्र में अच्छी बढ़ोत्तरी हुई है और अधिकांश इलाकों में मौसम तथा मानसून की हालत भी काफी हद तक अनुकूल है लेकिन सितम्बर में संभावित अत्यधिक बारिश से फसलों को क्षति होने की आशंका है।