मनुष्य को अधिक बालने की अपेक्षा मौन रहना चाहिए : आदित्य सागर महाराज

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कोटा। चंद्र प्रभु दिगम्बर जैन समाज समिति की ओर से जैन मंदिर रिद्धि- सिद्धि नगर कुन्हाड़ी में आयोजित चातुर्मास के अवसर पर आदित्य सागर मुनिराज ने बुधवार को अपने नीति प्रवचन में जीवन प्रबंधन पर कहा कि मनुष्य को अधिक बालने की अपेक्षा मौन रहना चाहिए। व्यक्ति अधिक बोलकर विवाद में पड़ जाता है और कम बोल कर उर्जा व समय बचाता है। आपकी भाषा आपके भावों की अभिव्यक्ति होती है।

जैसा आप सुनना चाहते हैं, वैसा बोलना सीखें। ऋषभ देव महाराज ने आगम में 72 कलाओं में बोलने को श्रेष्ठ कला बताया है। बोलने से कई विवाद सुलझते हैं तो कहीं महाभारत प्रारंभ हो जाती है। मनुष्य को अपनी शब्दावली का चयन सही प्रकार से करना चाहिए। साधु के समक्ष, बड़ों के साथ, बच्चों के बीच अलग- 2 शब्दावली होनी चाहिए। भाषा का चयन बहुत जरूरी है। बोलने से व्यक्ति या तो मन में उतरता है या मन से उतर जाता है।

उन्होंने कहा कि ज्यादा बोलने की अपेक्षा मौन रहना बेहतर है। व्यक्ति को कम बोलना चाहिए और काम का बोलना चाहिए। इससे लोग सदैव आपकी बात को गंभीरता से सुनेंगे। उन्होंने कहा कि आपके शब्द या तो लोगो के दिलों में आपको अमर कर देते हैं या आपको जीते जी मार देते हैं। मौन रहना एक साधना है और इसका लाभ आपको जीवन में मिलेगा।

इस अवसर पर सकल जैन समाज के संरक्षक राजमल पाटौदी, रिद्धि-सिद्धि जैन मंदिर अध्यक्ष राजेन्द्र गोधा, सचिव पंकज खटोड़, कोषाध्यक्ष ताराचंद बडला, चातुर्मास समिति के अध्यक्ष टीकम चंद पाटनी, मंत्री पारस बज ,कोषाध्यक्ष निर्मल अजमेरा, पारस कासलीवाल, राजमल पाटोदी सहित कई शहरों के श्रावक उपस्थित रहे।