अच्छे कार्यों में पति-पत्नी एक-दूजे की हां में हां मिलाओ -पं.नागरजी

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कथा के दौरान नृत्य करते पूर्व मंत्री प्रमोद जैन भाया और उनकी धर्मपत्नी।
अमृत प्रवाह : बड़ां के बालाजी धाम पर श्रीमद भागवत कथा में दूसरे दिन बरसात व ठिठुरती सर्दी के बावजूद दोगुना हुआ श्रद्धालुओं का सैलाब।

अरविंद, बारां। दिव्य गौसेवक संत पूज्य पं.कमल किशोर ‘नागरजी’ ने कहा कि विवाह में पति-पत्नी सुंदर जोड़ी बनाते हैं। लेकिन आज दोनों की दिशा उलटी हो जाने से कई घरों में अशांति, दुख और क्लेश बन रहा है। यदि जोड़ी एकमत रहे, पति-पत्नी अच्छे कार्यों में एक दूसरे की हां में हां मिलाते रहें तो जोड़ी अखंड बनी रहती है। 

मंगलवार को बारां के पास बड़ां के बालाजी धाम में चल रहे श्रीमद्भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव में पूज्य नागरजी ने कहा कि जूते दोनो पैरों में एक ही नंबर के हों तो सही चलते हैं। घर में किसी कार्य में एक 8 नंबर और दूसरा 9 नंबर की तरह मत बनो। जोड़ी हमेशा नंबर-1 जैसी बनी रहे।

घरों में एकमत होने की हवा चले। कहीं मंदिर बनाना हो या गौशाला, दोनों की हां होने से ईश्वर भी प्रकट होते हैं। घर में पिस्तौल या लकड़ी रखना केवल सुरक्षा के साधन हैं लेकिन काल यातना से बचने के लिए घर में माला हो, उससे यमदूत भी डरेंगे। उन्होने ‘मुझे ला दो भजन की वही माला, जिसने विष पीकर अमृत कर डाला..’ भजन सुनाकर विराट पांडाल में भक्ति रस बरसाया।

उन्होंनें कहा कि परिवार में खुशहाली के लिए पति-पत्नी एक दूसरे का साथ निभाओ, कभी धोखा मत देना। अपनी पत्नी को लक्ष्मी समझो। यदि पत्नी अज्ञानी है तो उसकी गलती सहना भी पति की तपस्या है। इसी तरह, पति शराबी होने पर पत्नी ने मजदूरी करके घर चलाया, छल या धोखा नहीं दिया, वह अनुसूईया है।

मंगलवार को कथा स्थल पर बरसात एवं ठिठुरती सर्दी के बावजूद पांडाल श्रद्धालुओं से खचाखच भरा रहा। दूसरे दिन भक्तों की संख्या बढ़ जाने से आयोजकां ने कथा के पांडाल का विस्तार किया।

जहां धन नहीं, वहां गुण मिलेंगे
उन्होंने व्यथित होकर कहा कि आजकल महिलाओं के साथ जो घटनाएं हो रही है, उसे केवल सतीत्व रोक सकता है। आधुनिक दौर में मोबाइल के गलत प्रयोग से सतीत्व कम हो रहा है। हम वही देखें और सुने, जिससे सतीत्व का स्तर न गिरे। यदि घर में सतीत्व है तो गृहस्थ जीवन स्वर्ग के समान है।

दहेज लालसा पर उन्होने कहा कि ईश्वर ने आपको धनवान तो पहले ही बना दिया, अब केवल अच्छी लड़की मांग रहे हो फिर धन क्यों चाहिए। याद रखें, जहां धन मिलेगा, वहां गुण नहीं मिलेंगे। इसी तरह, जहां धन नहीं है, वहां गुण मिलेंगे। दुर्भाग्य से आज धन के लालच में बेटियों की उम्र 30 से 35 वष तक हो जाती है।

शब्द को गुरू मानो, उसे जपते रहो
पूज्य नागरजी ने कहा कि आज धर्म में आडम्बर व तनाव बढ़ रहे हैं। हम बीच के रास्ते से निकलने वाले जीव हैं। शरीर में दोष आ सकता है लेकिन शब्द को गुरू मानोगे तो कभी दोष नहीं आएंगे। शब्द ब्रह्यांड में छाई आभा है, वायु है। यही हवा हमें तैराने का काम करेगी।

जिस तरह अपने वाहनों में पौंड देख हवा भरते हो, उसी तरह हमें साढे़ तीन करोड़ जप करना है। इसलिए भक्ति से निरंतर जुडे़ रहो। उन्होंने ‘भजन करो, गोविंद नहीं है दूर, गोविंद मिलेगा जरूर..’ भजन सुनाते हुए कहा कि जब मन में मंदिर बनाओगे तो वह आएगा जरूर। किसी गुरू की आवश्यकता नहीं है।

‘जब महावीर स्वामी इत्र बन गए..’
उन्हांने कहा कि महावीर स्वामी एक पर्वत किनारे तप कर रहे थे। मंत्र जाप के समय उनके अंदर मनोमय कोष उर्द्धाधर हुआ तो कुछ लोगों ने उनके उपर शिला गिरा दी। वहां सत्य में निष्ठा नहीं थी, फिर भी वे ध्यान मग्न रहे। उन्होंने कहा, मेरे अंदर का मनोमय कोष खुल चुका है। मैं शत्रु को मित्र मानता हूं। अभी वर्धमान हूं।

गिराने वाले ने पूछा- आप महान कैसे बनोगे? वे बोले- जो पुष्प  मेरे अंदर खिला है, वो भजन से खिला है। जब चट्टान गिरेगी तो ये इत्र बन जाएगा। इसी मनोमय कोष के खुलने से वे वर्धमान से महावीर कहलाए। महावीर नाम उपाधि नहीं, तपस्या की एक उपलब्धि थी। उसी इत्र को हम चांदी के श्रृंगार से कान में लगाते हैं। प्रतीक स्वरूप चांदी वास्तव में इत्र है।

द्वितीय सोपान सूत्र-

  • कान से कथा सुनना ही इत्र लगाना है।
  • शब्द ब्रह्यांड में छाई हुई आभा है, हवा है, जो हमें तैराएगी।
  • आप भक्ति में जहां भी रहें, ईश्वर की दया वहां पहुंच जाएगी।
  • आज हर मन काम, क्रोध, लोभ से हाउसफुल है, केवल भक्ति ही इससे बचाएगी।
  • गृहस्थी गलती करेगा तो चलेगा लेकिन साधू गलती न करे।
  • जिस गुरू ने जिम्मेदारी ली, उसने भक्ति बीज ही गलत दिया तो जन्म बिगड़ जाएगा।