दिनेश माहेश्वरी
कोटा। Lok Sabha Election Kota: मुकाबला जब एक ही अखाड़े से निकले दो पहलवालों के बीच हो तो हार-जीत का फैसला आसान नहीं होता। कुछ ऐसा ही दिलचस्प अखाड़ा बना है एजुकेशन हब कोटा में । इस सीट पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का मुकाबला इस बार उनके करीबी दोस्त और भाजपा में साथ काम करने वाले प्रह्लाद गुंजल से है।
बिरला की कमजोर नब्ज से वाकिफ गुंजल ने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें आराम से नहीं बैठने दिया। कांग्रेस उम्मीदवार गुंजल उन सभी स्थानीय मुददों को हवा दे रहे हैं जिससे बिरला की कार्य क्षमता पर सवाल उठे। बिरला ने पूरा चुनाव नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने और केंद्र सरकार के कामकाज को आधार बनाकर लड़ा है।
वह यहां से दो बार लोकसभा और तीन बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं और उन्हें पूरा भरोसा है कि इस बार लोकसभा में उनकी हैट्रिक तय है। लेकिन, गुंजल भी हैट्रिक रोकने के लिए हर दांव-पेच को आजमा रहे हैं। आम तौर पर कोटा की राजनीतिक जमीन भाजपा के मुफीद रही है लेकिन इस बार भाजपा से ही निकलकर आए गुंजल ने बिरला की जीत की राह मुश्किल बना दी है।
जातीय समीकरण : मुस्लिम मतदाता करीब 2.70 लाख हैं। मीणा मतदाता 2.25 लाख, ब्राह्मण 2.05 लाख, वैश्य 1.20 लाख, राजपूत 1.15 लाख हैं। अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या करीब 4.6 लाख है। राजपूतों में भाजपा के प्रति नाराजगी नजर आ रही है। लेकिन कोटा में हालिया धार्मिक अनुष्ठानों से भाजपा को फायदा मिल सकता है।
मोदी का चेहरा बनाम एयरपोर्ट की लड़ाई
ओम बिरला पीएम मोदी के चेहरे, राम मंदिर,अनुच्छेद-370 जैसे मुददों को उठा रहे हैं। वहीं, गुंजल ने कोटा एयरपोर्ट मामले को इतना बड़ा बना दिया है कि बिरला को बार-बार दोहराना पड़ रहा है कि इसके पीछे कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ही जिम्मेदार है। गुंजल हर जगह यह कहते दिख रहे हैं कि लोकसभा स्पीकर होने के बावजूद वह अपनी ताकत नहीं दिखा सके। ताकत का अंदाजा तब होता जब प्रधानमंत्री की तरफ से स्वीकृत 50 एयरपोर्ट में कोटा का भी नाम होता।
बिरला शहरी, गुंजल गांवों की आवाज
प्रहलाद गुंजल का सियासी करियर भी उतना ही लंबा है जितना ओम बिरला का। गुंजल दो बार विधायक रहे हैं। शहरी आबादी में जहां बिरला मजबूत स्थिति में नजर आते हैं, वहीं ग्रामीण इलाकों में लोग गुंजल को सुन रहे हैं। पूरे लोकसभा क्षेत्र के दो बड़े हिस्से कोटा और बूंदी को लेकर भी मतदाता बंटे नजर आ रहे हैं। बूंदी के मतदाताओं का मानना है कि उनका इलाका विकास में पिछड़ गया है।
दोनों दलों की अंदरूनी राजनीति भी दिखाएगी रंग
गुंजल के लिए कांग्रेस नई पार्टी है लेकिन वह गहलोत सरकार के विकास कार्यों को आधार बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि, गुंजल के कांग्रेस में आने और टिकट मिलने से पार्टी में भितरघात का खतरा बना हुआ है। गुंजल कभी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के करीबी रहे हैं ऐसे में राजस्थान में पार्टी के अंदर की राजनीति भी कोटा के चुनाव को प्रभावित कर सकती है। बिरला के खिलाफ गुंजल की लड़ाई में उनके पुराने संगठन भाजपा से जुड़े कुछ नेता भी मदद कर रहे हैं।
20.8 लाख मतदाता तय करेंगे हार-जीत
कोटा-बूंदी में करीब 20 लाख 88 हजार मतदाता हैं, जिसमें पुरुष और महिला मतदाताओं की संख्या में कोई खास अंतर नहीं है। करीब दस लाख 72 हजार पुरुष मतदाता हैं और महिला मतदाताओं की संख्या दस लाख 15 हजार है। इस सीट पर 15 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।