नई दिल्ली। Mustard sowing: 2022-23 सीजन के दौरान सरसों का बाजार भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे रहने के कारण सबसे प्रमुख उत्पादक प्रान्त-राजस्थान में इस महत्वपूर्ण तिलहन फसल की बिजाई का रकबा घट गया है। लेकिन उत्तर प्रदेश के किसानों ने इसकी खेती में जबरदस्त उत्साह दिखाया है।
राष्ट्रीय स्तर पर सरसों का बिजाई क्षेत्र गत वर्ष के 93.46 लाख हेक्टेयर से 2 प्रतिशत बढ़कर इस वर्स 22 दिसंबर तक 95.23 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया। समीक्षाधीन अवधि के दौरान राजस्थान में सरसों का रकबा 1.60 लाख हेक्टेयर घट गया। मगर उत्तर प्रदेश में 4.30 लाख हेक्टेयर या 32 प्रतिशत बढ़ गया।
दरअसल सरसों की खेती में इस बार विभिन्न प्रमुख उत्पादक राज्यों में किसानों को दिलचस्पी अलग-अलग रही। छोटे-छोटे उत्पादक प्रान्तों में भी किसानों ने सरसों की बिजाई में ज्यादा रूचि नहीं दिखाई क्योंकि इस बार उन्हें आकर्षक मूल्य प्राप्त नहीं हो सका।
सरसों का थोक मदनी भाव घटकर जब न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी नीचे आ गया तब किसानों को हंगामा करने के लिए बाध्य होना पड़ा। उसके बाद ही नैफेड एवं हैफेड जैसी सरकारी एजेंसियों ने किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर सरसों खरीदना शुरू किया। यह खरीद भी राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा एवं गुजरात जैसे राज्यों तक सीमित रही। अन्य प्रान्तों में किसान ऊंचे मूल्य की बात जोहते रह गये।
कृषि विश्लेषकों एवं विशेषज्ञों का मानना है कि सरसों के बिजाई क्षेत्र में कुछ इजाफा तो हुआ है लेकिन इसका उत्पादन जनवरी-फरवरी के मौसम पर निर्भर करेगा। सरसों की अगैती नई फसल की कटाई-तैयारी फरवरी में शुरू हो जाएगी जबकि मार्च से मई के बीच इसकी भारी आवक होगी।
इस बार सरसों की फसल पर रोगों-कीड़ों का प्रकोप तो नहीं देखा जा रहा है मगर जनवरी में अक्सर ओलावृष्टि की समस्या रहती है। केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने 2023-24 के वर्तमान रबी सीजन हेतु 131.40 लाख टन सरसों के उत्पादन का लक्ष्य नियत किया है जो 2022-23 के वास्तविक उत्पादन (सरकारी अनुमान) 128.43 लाख टन से ज्यादा है। 2021-22 के सीजन में 91.24 लाख टन सरसों का उत्पादन आंका गया था।