नई दिल्ली। Tuar Sowing: चालू वर्ष के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर तुवर का बिजाई क्षेत्र घटने और मौसम की प्रतिकूल स्थिति के कारण फसल को हुए नुकसान को देखते हुए इसके कुल उत्पादन में गिरावट आने की संभावना है जिससे बाजार भाव काफी ऊंचा एवं तेज रहने के आसार हैं लेकिन फिर भी केन्द्र सरकार इसकी भारी खरीद करने की योजना बना रही है ताकि आवश्यकता के समय घरेलू बाजार में उस स्टॉक को उतारकर कीमतों को नियंत्रित किया जा सके।
पिछले कुछ वर्षों से सीमित मात्रा में अरहर (तुवर) की सरकारी खरीद होती रही है जबकि 2023-24 के सीजन में खरीद की मात्रा को तेजी से बढ़ाकर 8-10 लाख टन तक पहुंचाने का प्लान बनाया जा रहा है।
व्यापार विश्लेषकों के अनुसार तुवर का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी ऊंचा चल रहा है और नई फसल का दाम भी इससे ऊंचा ही रहेगा। इसके चलते सरकार को प्रचलित बाजार मूल्य पर तुवर खरीदना पड़ेगा
जिसका इसके भाव पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ेगा। अगर सरकार अपनी योजना के अनुरूप 8-10 लाख टन तुवर खरीदने में सफल हो गई तो हाजिर बाजार में आगामी महीनों के दौरान इसका भारी अभाव उत्पन्न हो सकता है।
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि अखिल भारतीय स्तर पर तुवर दाल का औसत खुदरा मूल्य पिछले साल के 112 रुपए प्रति किलो से 40 प्रतिशत उछलकर इस वर्ष 158 रुपए प्रति किलो पर पहुंच गया जबकि कई क्षेत्रों में यह 180-190 रुपए प्रति किलो पर चला रहा है।
अक्टूबर में दाल-दलहनों की खुदरा महंगाई दर बढ़कर 1879 प्रतिशत पर पहुंची जिसमें तुवर, चना, उड़द एवं मसूर का विशेष योगदान रहा। मूंग के दाम में भी अच्छी बढ़ोत्तरी हुई और मटर का भाव ऊंचा रहा।
सरकार ने अफ्रीकी देशों एवं म्यांमार से तुवर के आयात को प्रोत्साहित करने के लिए आवश्यक कदम उठाया मगर इसका घरेलू बाजार पर कोई खास असर नहीं पड़ा। सरकार को भरोसा है कि अगले महीने से तुवर की नई घरेलू फसल की आवक शुरू होने पर कीमतों में कुछ नरमी आ सकती है।
तुवर की खरीद मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) योजना के माध्यम से की जाएगी क्योंकि मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के जरिए यह संभव नहीं हो पाएगी।
दो सरकारी एजेंसियों- नैफेड एवं एनसीसीएफ को इसकी खरीद का दायित्व सौंपा जा सकता है जो सीधे किसानों से इसकी खरीद अभी शुरू कर सकती है जब नई फसल की कटाई-तैयारी आरंभ होगी।
सरकार ने तुवर का घरेलू उत्पादन 2022-23 के 33.10 लाख टन से बढ़कर 2023-24 के सीजन में 34.21 लाख टन पर पहुंचने का अनुमान लगाया है लेकिन उद्योग-व्यापार समीक्षकों का मानना है कि अरहर का वास्तविक उत्पादन 30 लाख टन से भी कम हो सकता है।