विधानसभा में गुलाबचंद कटारिया के विदाई समारोह में यह क्या बोल गए गहलोत

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जयपुर। राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया के विदाई समारोह में सहभागिता कर उनके साथ व्यतीत दिलचस्प व यादगार किस्सों को स्मरण किया।सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि आजकल सरकारों और राज्यपालों के बीच टकराव चलता रहता है।

केरल, कनार्टक, बंगाल में टकराव चला, जहां-जहां विपक्ष की सरकारें हैं वहां टकराव चलता रहता है, ऐसा टकराव कभी देखा नहीं। गहलोत ने कटारिया से कहा- आप तो आरएसएस के कैडर के आदमी हैं। आपने पूरी जिंदगी ​बिता दी, असम में तो बीजेपी की सरकार है, असम में राजस्थानी भरे पड़े हैं तो आप वहां ध्यान रखेंगे।

सीएम गहलोत ने कटारिया से कहा कि आप जब भावुक होते हैं तो और ढंग से बोलते हैं। जब आप कैमरे के सामने जाते हो तो हमारी खूब ऐसी की तैसी करते हो, आपने कमी नहीं रखी,हमारी, हमारे नेतृत्व की और मेरी भी।

कोई कंजूसी नहीं रखी, जमकर आपने कैमरे के सामने क्या-क्या नहीं बोला होगा, वो लोगों के जेहन में है। आज के बाद अब आप बीजेपी के लिए न गुलाबजी भाई साहब रहोगे न सत्ता पक्ष के लिए गुलाबचंद कटारिया रहोगे। आप नए रूप में आ गए हो। अब भाई साहब वाली बात नहीं रहेगी। अब आप गर्वनर बन गए हो। उम्मीद है आप संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करते हुए असम में राजस्थान का डंका बजाएंगे।

विधानसभा सदन में गुरुवार देर शाम हुए समारोह में गुलाबचंद कटारिया को विदाई दी गई। विदाई समारोह में कटारिया भावुक दिखे। समारोह में गुलाबचंद कटारिया ने कहा- मैं आपका हूं, राजस्थान का मान और सम्मान बढ़ाना मेरी जिम्मेदारी है। विश्वास दिलाता हूं कि मेरे किसी आचरण से राजस्थान का गौरव नहीं गिरेगा, बल्कि गौरव बढ़ेगा।

इतना भरोसा दिला सकता हूं, मुझे जो भी सेवा का मौका देंगे, प्रदेश हित में जो काम किए जा सकते हैं, इसके लिए प्रधानमंत्री के पास जाना होगा तो जाऊंगा। राजस्थान का उत्थान मेरा उत्थान है। कटारिया ने कहा कि मैं कई बार भावुक हो जाता हूं।

कई बार आपसे भिड़ जाता हूं। कई बार लगा होगा। मेरे मन में किसी के प्रति गलत बात रहती नहीं है। कभी कोई कमी रही तो माफी चाहता हूं। आपका आशीर्वाद रहे ताकि मैं एक अच्छे जनसेवक के तौर पर संविधान की पालना करते हुए लोकतंत्र को मजबूत कर सकूं।

कटारिया ने की गहलोत की तारीफ
कटारिया ने गहलोत की तारीफ करते कहा कि मैंने सांसद के तौर पर 1980 में गहलोत साहब को देखा है। मैं 1980 में विधायकपुरी में रहता था। गहलोत साहब उस समय भी टेलीफोन करने के लिए दो-दो घंटे स्वागत कक्ष पर बैठते थे। अपनी जनता के लिए काम करने का जुनून तो ऐसा ही होना चाहिए, गहलोत की यह बात मैंने उस समय भी नोट की थी। अच्छी बात कहीं से भी मिले उसे मैं लेने से नहीं हिचकता, चाहे वह इधर का हो या उधर का, जो सच है वह तो सच ही रहेगा।