नई दिल्ली। हर चीज के कीमत में पिछले एक साल में भारी बढ़ोतरी हुई है। इनमें जीरा (cumin) भी शामिल है। देश में इस मसाले का व्यापक इस्तेमाल होता है। लेकिन इसकी कीमत में पिछले एक साल में 72 फीसदी की तेजी आई है और यह रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। इसकी मुख्य वजह यह है कि देश में जीरे की पैदावार कम हुई है। साथ ही किसान अब जीरे के बजाय ज्यादा मुनाफा देने वाली फसलों का रुख कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि भारत में जीरे का कम उत्पादन होने से दुनियाभर में इसकी कीमत में बढ़ोतरी हो सकती है। भारत दुनिया में जीरे का सबसे बड़ा उत्पादक है।
गुजरात की ऊंझा मंडी में इसकी कीमत 215 रुपये प्रति किलो के रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। ऊंझा की कृषि मंडी के उपाध्यक्ष अरविंद पटेल ने कहा कि इस साल जीरे के कीमत रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। CRISIL की एक रिपोर्ट के मुताबिक मंडी में जीरे की कीमत मार्च और अप्रैल में जीरे की कीमत पिछले साल के मुकाबले 47% और 72% बढ़ी हैं। मार्च में ऊंझा मंडी में जीरे की कीमत 180 रुपये प्रति किलो थी जो अब 215 रुपये प्रति किलो पहुंच गई है। पिछले साल जीरे की कीमत 120-125 रुपये किलो थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में 42 फीसदी जीरे की आवक गुजरात की ऊंझा मंडी में होती है। इस मंडी में मार्च में आवक में पिछले साल के मुकाबले 60 फीसदी गिरावट आई है। हालांकि एक से 23 अप्रैल के बीच मंडी में जीरे की आवक पिछले साल के मुकाबले 38 फीसदी बढ़ी है लेकिन इसकी वजह लो बेस है। पिछले साल कोरोना महामारी के बीच अप्रैल के दूसरे पखवाड़े में यहां जीरे की कोई आवक नहीं हुई थी। दुनिया में जीरे के कुल उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 70 फीसदी है। साथ ही भारत जीरे का सबसे बड़ा निर्यातक है। भारत अपने उत्पादन का 30 से 35 फीसदी निर्यात करता है।
अनुमान के मुताबिक इस बार जीरे का उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 35 फीसदी कम रहने का अनुमान है। उत्पादन और रकबे में कमी की मुख्य वजह यह है कि जीरे की बुवाई के समय (अक्टूबर-दिसंबर 2021) किसानों ने चने और सरसों का रुख किया था। तब इनकी कीमत जीरे से ज्यादा थी। साथ ही जीरे के प्रमुख उत्पादक इलाकों में ज्यादा बारिश भी इसकी वजह रही। देश में गुजरात के द्वारका, बनासकांठा और कच्छ तथा राजस्थान के जोधपुर और नागौर में जीरे का उत्पादन होता है। फसल को बीमारी लगने की आशंका के कारण किसानों ने इसकी बुवाई से परहेज किया।