विद्या से ही व्यक्ति के जीवन में पूर्णता आती है: घनश्यामाचार्य महाराज

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कोटा। श्री झालरिया पीठाधिपति जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी घनश्यामाचार्य महाराज ने कोटा प्रवास के दौरान शनिवार को विद्यार्थियों को संस्कारों की सीख दी। एलनकॅरियर इंस्टीट्यूट के जवाहर नगर स्थित समरस सभागार में कार्यक्रम आयोजित किया गया।

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि जीवन में सबसे बड़ा दान विद्या को होता है। विद्या से ही व्यक्ति में पूर्णता आती है। यही हमें दूसरे प्राणियों से अलग बनाती है। शक्ति का अहसास और भक्ति की जरूरत समझाती है। विद्या समाज और राष्ट्र के प्रति हमारे कर्तव्यों के लिए जागृत करती है। हमें खुद के लिए ही नहीं दूसरों के लिए भी जीना सिखाती है। खाना-पीना, सोना-जागना तो पशु और इंसान दोनों करते हैं, लेकिन जब उसमें संस्कार आ जाते हैं, तो उसका महत्व बदल जाता है।

महाराज ने कहा कि आज एलन को दूसरे संस्थानों से अलग क्यों माना जाता है, क्यों विद्यार्थी यहां आकर अच्छा महसूस करते हैं। यहां पढ़ रहे बच्चों के अभिभावकों को भी बहुत अच्छा लगता है, क्योंकि यहां शिक्षा के साथ-साथ संस्कारों का भी ध्यान रखा जाता है। विद्यार्थियों के साथ ईमानदारी से मेहनत की जाती है। आप लोग बहुत दूर-दूर से यहां शिक्षा लेने आ रहे हैं। माता-पिता की अपेक्षाएं हैंं, आप लोगों के सपने भी हैं। ईमानदारी के साथ प्रयास करें। लक्ष्य को साधने के लिए दिन-रात जुटे रहें और जब पढ़ाई हो जाए तो परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए जीवन जीने का संकल्प भी लें। कार्यक्रम में स्टूडेंट्स, पेरेन्ट्स व फैकल्टीज शामिल हुए।

गुरू की निंदा करने वाले का पतन होता है
स्वामी जी महाराज ने विद्यार्थियों से कहा कि गुरू का सम्मान करोगे तो अपने आप विद्या बढ़ेगी। गुरू की निंदा करने वाला कभी तरक्की नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि छात्रों को पंच लक्षणों का ध्यान रखना होगा। काग चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च। अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।। अर्थात एक विद्यार्थी को कौए की तरह चेष्टावान और बगुले की तरह एकाग्र होना चाहिए। श्वान के समान संतुलित नींद लेनी होगी और सात्विक आहार लेना चाहिए और घर का मोह त्यागते हुए लक्ष्य के प्रति समर्पित हो जाएं।

विद्या का सदुपयोग समाज और राष्ट्र के लिए करो
स्वामी जी महाराज ने विद्यार्थियों से कहा कि गुरू का सम्मान करोगे तो अपने आप विद्या बढ़ेगी। गुरू की निंदा करने वाला कभी तरक्की नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि छात्रों को पंच लक्षणों का ध्यान रखना होगा। काग चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च। अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।। अर्थात एक विद्यार्थी को कौए की तरह चेष्टावान और बगुले की तरह एकाग्र होना चाहिए। श्वान के समान संतुलित नींद लेनी होगी और सात्विक आहार लेना चाहिए और घर का मोह त्यागते हुए लक्ष्य के प्रति समर्पित हो जाएं। बहुत कुछ पढ़ लिया तब भी पढ़ते रहो और अपनी विद्या का सदुपयोग समाज और राष्ट्र के लिए करो।

चरित्र निर्माण में मां ही महत्वपूर्ण
शनिवार को महाराज की प्रातः आरती अर्चना, दर्शन इन्द्रविहार स्थित एलन मानधना परिवार के संत निवास पर हुई। इस दौरान महाराज ने कहा कि बच्चों के निर्माण में सबसे बड़ी भूमिका मां की होती है। मां संस्कार सिखाती है और पिता व्यापार सिखाते हैं। माता-पिता के संस्कारों से मिलकर ही युवा तैयार होता है। यदि इन संस्कारों में कुछ ऊंच-नीच होती है तो इसका परिणाम हमें समाज में देखने को भी मिलता है। इसलिए जरूरी है कि संस्कार अच्छे दें और यही बच्चों की सबसे बड़ी पूंजी साबित होती है।